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________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि . ********************** **** ********* समाधान - भगवती सूत्र का नाम लेकर हाथ में वस्त्र रखने का कहना भी भूल है। भगवती सूत्र में श्री गौतमस्वामी के प्रश्न करने पर श्रमण भगवन्त श्री वीर प्रभु ने फरमाया कि जब शक्रेन्द्र मुख पर वस्त्रादि रखकर बोलता है, तो वह निर्वद्य भाषा बोलता है। और वस्त्रादि रहित खुले मुँह बोलता है, तब सावध भाषा बोलता है। श्री गौतमस्वामीजी के इस प्रकार के प्रश्न का यी आशय है, कि हम जो साधु हैं सो तो सदैव मुखवस्त्रिका मुख पर बाँधी रखते हैं, जिससे वायुकायादि जीवों की दया होती है। परन्तु शक्रेन्द्र कभी तो वस्त्र से यत्ना करके बोलता है, व कभी वैसे ही खुले मुँह भी बोलता होगा। क्योंकि यह तो हमारी तरह मुखवस्त्रिका धारण नहीं करता है। तब इसकी भाषा कैसी कही जायगी? ठीक इसी विचार से यह प्रश्न उपस्थित हुआ मालूम होता है, जिसका प्रभु ने पूर्वोक्त उत्तर दिया है। प्रभु ने वहाँ देवेन्द्र का लिहाज नहीं करते हुए स्पष्ट फरमा दिया कि जब शक्रेन्द्र वस्त्रादि से यत्ना कर बोलता है, तभी वह भाषा निर्वद्य हो सकती है, अन्यथा सावद्य। भला ऐसे कथन से ज्ञानसुन्दरजी किस प्रकार हाथ में वस्त्र रखना सिद्ध करते हैं? इससे तो उल्टा इन्हें यह उपदेश प्राप्त करना चाहिए कि जब अविरति गृहस्थ देवेन्द्र होते हुए भी निर्वद्य भाषा के लिए वस्त्रादि से मुँह की यत्ना करके बोलता है, तब हम तो साधु हैं। सर्वथा दया पालना ही हमारी प्रतिज्ञा है, हमें तो अपनी प्रतिज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करने केलिए मखवस्त्रिका मुँह पर धारण करनी ही चाहिए। जिससे एक तो जीवों की दया रूप प्रतिज्ञा के पालक बनें। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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