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________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि १६ ************************************** (६) हित शिक्षानो रास पृष्ठ २०७ पंक्ति ह (श्रावकाधिकार) रजोहरणो "उज्झल मुंहपत्ति अलगी न करे ते मुंह पति" यहाँ मुख-वस्त्रिका को मुँह से दूर नहीं करे ऐसा कहा है। (७) सम्यक्त्व मूल बारह व्रतनी टीप पृष्ठ १२१ पंक्ति १६ 'जयणायुक्त थई “मुहपत्ति मुखे बाँधीने' पुस्तक उपर दृष्टि राखीने भणे तथा साँभले' ऐसा सामायिक व्रत के अधिकार में लिखा (८) 'जैनीझम' जिसके लेखक जर्मन विद्वान् प्रो० हेल्मुट ग्लाजेनाप हैं, उसका भाषान्तर गुजराती में नरसिंहभाई ईश्वरभाई पटेल ने किया है, और भावनगर की जैन धर्म प्रसारक सभा से प्रकाशित हुवा है, उस (जैन धर्म नाम की पुस्तक) के पृष्ठ ३६१ पंक्ति २८ पर लिखा है कि - त्यारे एमनी साथेना साधुओ तुरतज म्हों उपर मुखपट्टी बाँधी। श्वास बड़े कोई जीवनी हिंसा थाय नहिं एटला माटे जैन साधुओओ बाँधवानी होय छे। . () मूर्तिपूजक विजयानन्दसूरि (आत्मारामजी) ने अपने ही किसी मूर्तिपूजक साधु को-इन्हीं नाभा शास्त्रार्थ में पराजित वल्लभविजयजी के हाथ से एक पत्र लिखवाया है, जिसका फोटो "मुँहपत्ति चर्चासार" नामक पुस्तक जो पन्यास रत्नविजयजी गणि लिखित है, और विजय नीतिसूरि जैन लाईब्रेरी, अहमदाबाद से सम्वत् १९६० में (प्रथमावृत्ति) प्रकाशित हुई है, उसके पृष्ठ ८४ के आगे दिया गया है, और उसकी नकल भावनगर के मूर्तिपूजक पत्र "जैन' साप्ताहिक के पुस्तक ३३ अंक ३६ तारीख २२-६१९३५ मिती भादवा (मारवाड़ी आश्विन) वदी १० रविवार विक्रम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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