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________________ मिथ्याभिमान महिमा ************************************** इस (वल्लभविजयजी की सम्प्रदाय के) समाचार पत्र के प्रमाण से यह सिद्ध होने में कोई कसर नहीं है, कि उस समय फैसला हो चुका था। और वह गणिराज की जय सूचक ही था। तभी तो उसे काम चलाऊ कहा जा रहा है। अतः तत्कालीन दिया हुआ फैसला जो गणिराज के पास है, वह सत्य है और यह नूतन फैसला जाली है। यह स्पष्ट सिद्ध है, इसमें कोई शंका नहीं। इसके सिवाय इन लोगों के पत्रकारों ने नाभा नरेश को भी इस विषय में अप शब्दों द्वारा संमानित किया था। यह प्रकट में इनकी पराजय सिद्ध करता है और यह ठीक भी है। क्योंकि - जो व्यक्ति किसी मामले में न्यायालय से विजय प्राप्त करता है वह उस न्यायाधीश की प्रशंसा करता है, और हारने वाला करता है निन्दा। पर इसके विरुद्ध विजय पाने वाले को निन्दा करते, व पराजित व्यक्ति को प्रशंसा करते तो आज तक नहीं देखा। फिर यह अनोखी बात कैसी, जो उस समय की, इनकी पत्रिकाओं से प्रमाणित होती है। अतः इनके कहे जाने वाले असली (वास्तव में नकली) फैसले की कल्पितता में कोई सन्देह नहीं है। जिस भाई को इस विषय में अधिक जानना है उन्हें चाहिए कि-पोष्ट खर्च के तीन पैसे के स्टॉम्प भेजकर “पीताम्बरी पराजय' नामक ट्रेक्ट श्रीयुत् कल्याणमलजी बैद, नया बाजार, अजमेर से मँगवा ले *। . . हमारे मूर्तिपूजक भाई कहते हैं कि - शिवपुराण के आधार पर यह फैसला हुआ है, और उसमें मुख-वस्त्रिका मुँह पर बांधना नहीं लिखा है। इस पर से शिवपुराण के प्रमाण को भी देखकर निर्णय करना आवश्यक है-देखें शिवपुराण इस विषय में क्या कहता है? * और इस बात को यथा तथ्य जानना हो तो दिल्ली से प्रकाशित 'नाभा शास्त्रार्थ' पढ़े। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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