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________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि ********** *************** ************* फलौदी वाले फैसले के पृष्ठ ३ पंक्ति १२ में लेखक महाशय बतलाते हैं कि - "व्यतीत सम्वत्सर के ज्येष्ठ शुक्ल ५ सं० १९६१ को जो शास्त्रार्थ मध्य में छोड़ा गया था, जिसका यह आशय था कि - ढूंढियों की ओर से सदा मुख-बन्धन की विधि का कोई प्रमाण मिले, सो आज दिन तक कोई उत्तर इनकी तरफ से प्रगट नहीं हुआ, अतः उनकी मूकता आपके शास्त्रार्थ के विजय की सूचिता है।" आदि २ मार पीट कर खड़े किये गये इस फैसले में हमारे बन्धु दो बातें बतलाते हैं। जैसे - (१) शास्त्रार्थ मध्य में छोड़ा गया। (२) कारण-मुखवस्त्रिका सदा मुख पर बांधने के विषय में साधु मार्गियों से उत्तर लेना। केवल ये दो बातें ही यहां संक्षेप में विचारी जाती हैं। जब कि स्वयं यह नकली फैसला ही बता रहा है कि - "तिस पीछे कई दिन तक हमारे सामने आपका और उदयचन्दजी का शास्त्रार्थ होता रहा।" ____ आश्चर्य इस बात का होता है कि - एक तरफ तो लिखते हैं कि शास्त्रार्थ कई दिन तक होता रहा और दूसरी तरफ लिखते हैं कि-"उनकी तरफ से कोई प्रमाण नहीं मिला तो क्या, इतने दिन तक केवल वल्लभविजयजी अकेले ही अपने आप शास्त्रार्थ करते रहे? यदि एक पक्ष के विरुद्ध दूसरा पक्ष कुछ भी प्रमाण नहीं दे, तो वह उसी समय पराजित हो सकता है, फिर इतने दिन लम्बाने की आवश्यकता ही क्या हो सकती है? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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