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8- JINA PARSVA TEMPLES IN KARANATAKA - Dr. Nagarajaiah, Hampa
Hornbuja Jaina Matha HOMBUJA, Shimoga, Karanataka, 1999 Rs. 150/9-Studies in Jainism edited by Dr. Dulichand Jain, Jain Study Circle, Inc .99-11 60 Avenue # 3D Flushing, New York, 11368, USA 1997 10- Studies In Jainism : Reader - 1 edited by Dr. Dulichand Jain
Jain Study Circle, Inc .99-11 60 Avenue, # 3D
Flushing, New York, 11368, USA 1997
11- Studies In Jainism: Reader -2 edited by Dr. Dulichand Jain Jain Study Circle, Inc .99-11 60 Avenue, # 3D Flushing, New York, 11368, USA 1997
इस साहित्य सूची में कई प्रकाशनों के नाम जुड़ने में छूट गये हैं । प्राकृत और जैन धर्म की अनेक पुस्तकें व्यक्तिगत एवं किसी छोटे स्थान से भी प्रकाशित हुई हैं। अनेक पुस्तकें ऐसी हैं जो समीक्षा आदि में स्थान नहीं पा सकीं। प्रादेशिक भाषाओं में प्रकाशित होने वाला साहित्य भी सभी विद्वानों की दृष्टि में नहीं आ पाता है । अतः विगत दशक के प्रकाशित जैन साहित्य की एक बृहत् सूची बनाने का प्रोजेक्ट पूरा किया जाना एक उपयोगी कार्य होगा ।
सारस्वत संतों / विद्वानों का विछोह
विगत दशक में प्राकृत एवं जैनविद्या के अध्ययन-अनुसंधान के क्षेत्र सं गहरायी से जुड़े हुए कतिपय विद्वान् एवं सन्त दिवंगत हुए हैं। उनकी सारस्वत कमी को लम्बे समय तक पूरा नहीं किया जा सकेगा। ऐस विद्वानों / सन्तों में आचार्य आनन्द ऋषि आचार्य तुलसी आचार्य देवेन्द्र मुनि आचार्य
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विमलसागर, आचार्य नानेश, तथा पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पं. जगन्मोहन लाल शास्त्री पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री प्रो. जगदीशचन्द्र जैन, डॉ. नथमल टाटिया, प्रो. दरबारी लाल कोठिया पं. बलभद्र जैन, डॉ. नरेन्द्र भानावत, डॉ. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल, प्रो. दलसुख भाई मालवणिया आदि प्रमुख हैं । इन सभी दिवंगत सरस्वतीपुत्रों को सादर स्मरणपूर्वक नमन है ।
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प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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