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के साथ-साथ जापान, फ्रांस, इंगलैण्ड और अमेरिका से पधारे विद्वानों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये । संगोष्ठी का उद्घाटन प्रख्यात विधिवेत्ता डॉ. एल. एम. सिंघवी ने किया और इसमें 21 शोध पत्रों के वाचन और उन पर गम्भीर चर्चा के साथ 4 विशेष व्याख्यान भी हुए ।
आचार्य श्री विद्यानन्द शौरसेनी प्राकृत पुरस्कार
प्राकृत भाषा एंव साहित्य के गवेषी मूर्धन्य विद्वान् प्रो. बी. के. खडबडी को वर्ष 1997 का आचार्य विद्यानन्द पुरस्कार समर्पित करते हुए समारोह के मुख्य अतिथि उपराज्यपाल महामहिम श्री विजय कपूर ने कहा कि किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति और समाज को समुचित ढंग से समझने के लिए वहाँ के प्राचीन भाषा- साहित्य को जानना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारत में प्राचीन भाषा पर शोध और अध्ययन के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं हुआ है। यूरोपीय देशों में लेटिन भाषा पर काफी शोध कार्य करने और प्रचार करने की व्यवस्था है क्योंकि यह कई यूरोपीय भाषाओं की जननी है । उन्होंने कहा कि प्राकृत से अनेक आधुनिक प्रादेशिक भाषाओं और बोलियों का विकास हुआ है इसलिए इसका व्यापक अध्ययन जरूरी है ।
प्रो. खडबडी को आचार्य विद्यानन्द शौरसेनी प्राकृत पुरस्कार और प्राकृतप्राज्ञ की उपाधि से अलंकृत किया गया । 51 हजार रूपये का यह पुरस्कार प्राचीन भाषाओं के संरक्षण एंव प्रकाशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली देश की सुप्रसिद्ध साहित्यिक संस्था भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा स्थापित है और प्रतिवर्ष श्री कुन्दकुन्द भारती के तत्वाधान में प्राकृत भाषा के एक विद्वान् को दिया जाता है । 1996 को यह पुरस्कार प्रो. एम. डी. वसन्तराज को दिया गया
था ।
आचार्य कुन्दकुन्द पुरस्कार
सोलापुर ( महाराष्ट् ) के " गॉधी नाथा रंगजी जनमंगल प्रतिष्ठान द्वारा प्रदत्त वर्ष 1995 का चतुर्थ 51,000 / - राशि का आचार्य कुन्दकुन्द पुरस्कार
जैन दर्शन एवं न्यायशास्त्र के सुप्रसिद्ध विद्वान् एवं सुपरिचित लेखक डॉ. दरबारी लाल कोठिया ( 85 वर्ष) को उनकी विशिष्ठ साहित्यिक सेवाओं के लिए भेंट किया गया एवं उन्हें " न्यायसिन्धु " की उपाधि से अलंकृत किया गया ।
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प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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