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________________ ७२ १- अध्यात्म खण्ड पहचानिये और परखिये । यदि हृदयके कपाट बन्द हैं तो पूजा, भक्ति, उपासना, आराधना, तप, त्याग, स्वाध्याय, चर्चा तथा अन्य धार्मिक क्रियायें करके भी आप क्या कर पाते हैं ? जिस प्रकार शरीर तथा धन यहीं रह जाता है, इसी प्रकार ये सब क्रियायें भी यहीं रह जाती हैं । हृदय ही हमारा जीवन है, यही हमारा व्यक्तित्व है । लोक में भी कहावत है कि 'इसका हृदय बड़ा काला है, इसका हृदय बड़ा उज्ज्वल है' । हृदयवान व्यक्ति ही लोकमें विश्वासका पात्र होता है, हृदयहीन नहीं । इसलिये हृदय के मार्ग में आगे बढ़ो, उसके बन्द कपाट खोलनेका प्रयत्न करो । - "हृदयके पट खोल रे तोहि राम मिलेंगे ।” " समता ही हमारा लक्ष्य है, वही हमारा मन्तव्य है, वही हमारा प्राप्तव्य है, वही हमारा साध्य है । वही परमार्थ धर्म है, वही परमार्थ चारित्र है, वही परमार्थ तप है, वही परमार्थ स्वाध्याय है । इसीलिये न्यायके अनुसार ज्यों-त्यों उसकी उलब्धि होती जाये त्योंत्यों व्यवहार धर्मका व्यवहार चारित्रका व्यवहार- तपका, व्यवहारस्वाध्यायका त्याग होता जाना चाहिए। जिस प्रकार रुग्ण अवस्था में औषधी रोगी के लिये उपकारी होती है उसी प्रकार ये सब यद्यपि व्यवहार भूमिवाले साधक के लिए परमोपयोगी हैं, परन्तु जिस प्रकार स्वस्थ व्यक्तिके लिये औषधी विष है उसी प्रकार समताकी परमार्थ भूमिके हस्तगत हो जानेपर ये सब विष हैं । ر व्यवहार सम्यग्दर्शनके क्षेत्रमें उल्लिखित तत्त्वश्रद्धान्, व्यवहार सम्यग्ज्ञानके क्षेत्रमें उल्लिखित शास्त्राध्ययन, व्यवहार चारित्रके क्षेत्र में उल्लिखित शुभे प्रवृत्ति, अशुभे निवृत्ति, त्याग, व्रत आदि और व्यवहार तपके क्षेत्रमें उल्लिखित प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त, प्रतिसरण, आलोचन, निन्दन, गर्हण, परिणाम- विशुद्धि आदि सब यद्यपि व्यवहार भूमिवाले प्रमत्त साधकके लिए अमृतकुम्भ कहे गये हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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