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________________ ६-अहंकार दर्शन यद्यपि अहंकारकी कामना, प्रयत्न तथा पुरुषार्थ परमार्थतः अपनेको पूर्ण करनेके लिये है, अपनी संकीर्णताको दूर करनेके लिए है, तदपि इस प्रयोजनकी सिद्धिके लिए जिन करणोंका आश्रय उसने ले लिया है वे महा आकाशमें एक छिद्रकी भाँति अत्यन्त क्षुद्र हैं । यही कारण है कि पूर्ण होते हुए भी अहंकार क्षुद्र हो गया है, उसकी कामना समग्रके प्रति न होकर उसमें से किसी एक छोटेसे अंगके प्रति अर्थात् देहाध्यस्त अपने क्षुद्र व्यक्तित्वके प्रति अथवा किसी एक जड़ या चेतन पदार्थके प्रति केन्द्रित हो गयी है। जानने, करने तथा भोगनेका उसका सकल प्रयत्न अथवा पुरुषार्थ भी समग्रके प्रति न होकर उसी क्षुद्रके प्रति केन्द्रित हो कर रह गया है । समग्रको छोड़कर उसके अंगभूत किसी एक वस्तुके प्रति केन्द्रित हो जानेके कारण वह स्वयं, उसकी कामना तथा पुरुषार्थ सब संकीर्ण हो गए हैं। 'थोथा चना बाजे घना, ओछा घड़ा छलके धना', इस न्यायके अनुसार वह चंचल है। एक पदार्थको छोड़कर दूसरेके प्रति और दूसरेको छोड़कर तीसरेके प्रति दौड़ता है। वह एक-एकको पकड़कर अपनेको पूर्ण कर लेना चाहता है, परन्तु ज्यों-ज्यों आगे जाता है, पिछला पिछला उसके हाथसे छूटता जाता है। इसलिए 'आगे बांटे जेवड़ी पीछे बछड़ा खाय' की लोकोक्तिके अनुसार वह अनादि कालसे संघर्षरत रहते हुए भी न तो आजतक समग्रको हस्तगत कर सका है और न आगे कर सकेगा। करणोंका आश्रय लेना उसकी भूल है जिसे वह नहीं समझ पाता। यही उसकी वह अविद्या है जिसे कि शास्त्रोंमें मिथ्यात्व कहा गया है। __ अपनी इस भूलके कारण वह सदा विकल्प-वीचियोंके रूपमें क्षुब्ध रहता है, सदा भागता दौड़ता रहता है, परन्तु जिसप्रकार कोल्हूके साथ बन्धा होनेके कारण तेलीका बैल सारा दिन चलकर भी वहाँका वहाँ ही रहता है, इसी प्रकार समग्रसे विभक्त किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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