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________________ १-अध्यात्म खण्ड सर्वज्ञ है और एक अखण्ड पूर्ण तथा अविभक्त देखनेके कारण केवली है। 'अहं' तथा 'इदं' की यह पूर्णता दो प्रकारसे दृष्ट हो सकती है-एक तो बिना किसीकी सहायताके स्वयं अपने ज्ञान से प्रत्यक्ष करके और दूसरे शास्त्रादिकी सहायतासे बुद्धिके द्वारा निर्णय करके । पहली प्रकारसे देखने वाले को केवली कहते हैं और दूसरे प्रकार से देखने वालेको श्रुतकेवली। भले ही हम वर्तमानमें केवली होनेके लिए समर्थ न हों, परन्तु क्या श्रुतकेवली भी नहीं हो सकते ? कहीं वाणीके कोपके भाजन न बन जाएँ इस प्रकार का भय सम्भवतः आपके मार्गमें आड़े आ रहा है, परन्तु मत घबराइये, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि यदि कदाचित् आप 'अहं' तथा 'इदं' इन दोनोंके पूर्ण तथा अखण्ड स्वरूपको समझकर अपने देखने तथा जाननेका व्यवहार इसके अनुसार करने लगें तो अवश्य श्रुतकेवली बन जायें। तब वाणी माता कुपित होनेकी बजाये तुम्हें स्वयं आशीर्वाद देगी। "जो सुएण हि गच्छइ अप्पाणमिणं दु केवलं सुद्धं । सुयकेवलिमिसिणो, भणंति लोयप्पईवयवा ।।" जो श्रुतज्ञानके द्वारा आत्माको अर्थात् अहं को और साथ-साथ उसके विषयभूत इदं को भी केवल तथा शुद्ध जानता है, अर्थात् एक अखण्ड पूर्ण तथा निर्विकल्प जानता है, उसे लोकालोकको प्रत्यक्ष करनेवाले केवली भगवान् श्रुतकेवली कहते हैं। ३. पूर्ण इवंता महासत्ता अहम् की पूर्णताका कथन अगले अधिकारमें करूंगा। यहां पहले इदं की पूर्णताका थोड़ासा चित्रण करता हूं। तनिक ध्यान से देखिये, क्योंकि इस प्रकारका कथन सम्भवतः आपने इससे पहले कभी भी किसीके मुखसे नहीं सुना है। इसलिए सन्देह न करना, केवल देखना। यदि इसी प्रकार दिखाई दे तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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