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________________ ३ ४-महामाया अपने भिन्न क्षेत्रोंमें स्थित स्वतन्त्र सत्ताधारी पदार्थ हैं या कुछ और हैं ? आपका अन्तष्करण स्वयं इस बातका साक्षी है कि ये दोनों बाह्य वालोंकी भाँति स्वतन्त्र सत्ताधारी पदार्थ न होकर ज्ञानात्मक ही कुछ हैं। ये दोनों ज्ञानमें कल्पित आकृतियें हैं, अन्य कुछ नहीं। बस इसपर से सिद्धान्त निर्धारित कर लीजिए कि आभ्यन्तर जगत्में प्रतीयमान अहं तथा इदं बाह्य वालोंके समान ही नाम रूपको धारण करते हैं तथापि वे उनकी भाँति स्वतन्त्र पदार्थ न होकर ज्ञानमें कल्पित किये गये होते हैं। ३. माया इसपर से एक द्वितीय सिद्धान्त स्वतः उदित हो जाता है कि ज्ञान में यह सामर्थ्य है कि वस्तुतः एक होते हुए भी वह अहं तथा इदं के रूपमें द्विधा विभक्त हो सकता है। एक दूसरेसे पृथक् प्रतीयमान होते हुए भी ये दोनों वास्तवमें दर्पणके प्रतिबिम्बोंकी भाँति ज्ञानके प्रतिबिम्ब मात्र हैं, उनके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं। इतनी विशेषता है कि दर्पणमें वही वस्तु प्रतिबिम्बित होती है जोकि उसके समक्ष विद्यमान हो, परन्तु ज्ञानके लिए ऐसा कोई बन्धन नहीं है। बाहरमें वह वस्तु विद्यमान हो या न हो, ज्ञानमें वह प्रतिबिम्बित हो सकती है। जैसे कि सम्मेद-शिखर इस समय आपकी आँखोंके समक्ष विद्यमान नहीं है तदपि आँखें बन्द कर लेने पर वह ज्योंका त्यों आपके भीतर प्रतिबिम्बित हो रहा है और आप साक्षात् रूपसे स्वयं अपनेको उसकी वन्दना करते हुए देख रहे हैं। एक होते हुए भी अपनेको अहं तथा इदंके रूपमें द्विधा विभक्त करलेने वाली यह सामर्थ्य ही वह महामाया है जिसके द्वारा ज्ञानने अपना एक तथा अखण्ड स्वरूप ढक रखा है। इसलिए शास्त्रमें इसे ज्ञानावरण कहा गया है। विकल्पोंके रूपमें अनेकधा विभक्त होकर समग्रताका लोप हो जाना इसका स्वरूप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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