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________________ २१ ४-महामाया ज्ञानके सम्बन्धमें प्रस्तुत इस विचारमें हम दो पदार्थोंका दर्शन कर रहे हैं --'अहं' का तथा 'इदं' का अर्थात् ज्ञाताका और ज्ञेयका। 'जानामि' (जानता हूँ), यह एक क्रिया है जो दोनोंके मध्य सेतुका काम कर रही है, अर्थात् अहंको इदंके साथ और इदंको अहंके साथ संयुक्त करती है। इन तीनों पदोंमें से 'जानामि' का वाच्यार्य आबालगोपाल प्रसिद्ध है, क्योंकि जाननरूप क्रियाकी प्रतीति सभी कर रहे हैं। अतः 'अहं' तथा 'इदं' इन दो पदोंका वाच्यार्य ही यहाँ मननीय है। बहुत सम्भव है कि यहाँ आपके मनमें यह शंका जाग्रत हो जाये कि 'जानामि' की भाँति 'अहं तथा इदं' का अर्थ भी तो सर्वत्र प्रसिद्ध ही है, फिर इसका व्यर्थ पिष्टपेषण क्यों किया जाय? ठीक है, परन्तु जैसा कि आप देखेगें यह व्यर्थका पिष्टपेषण नहीं है। इन दोनों पदोंके विचार द्वारा हमें यहाँ आभ्यन्तर ज्ञानको प्रक्रियाका एक विशेष रहस्य उद्घाटित करना इष्ट है। लीजिये, तनिक सावधान होकर सुनिये और सुननेके साथ-साथ अपने भीतर स्थित मेरे संकेतोंके अर्थोंका निरीक्षण करते रहिये। बाह्य ज्ञान के क्षेत्रमें जिसप्रकार अहं तथा इदं प्रसिद्ध हैं, उस प्रकार आभ्यन्तर ज्ञानके क्षेत्रमें नहीं हैं। बाह्य ज्ञानकी प्रक्रियाको उदाहरण मानकर ही आभ्यन्तर ज्ञानकी प्रक्रियाका अध्ययन किया जा सकता है। इसलिये आइये पहले हम बाह्य ज्ञानकी प्रक्रियाका विश्लेषण करें। २. अहम् इदम् ___ बाह्य ज्ञानमें एक तो 'अहमिदं जानामि' कहनेवाला शरीरधारी रामलाल है जोकि जाननरूप कार्य कर रहा है और दूसरे उसके नेत्रोंके समक्ष विद्यमान प्रतिमा रूपी भगवान् हैं जिन्हें कि वह जान रहा है। जाननरूप क्रियाको करनेके कारण रामलाल उस ज्ञानका कर्ता है और जाननेमें आनेवाले भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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