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________________ सहज व्यवस्था २०७ बैठकर करे तो वह अवश्य सत्य हो जाये, क्योंकि उस समय तू समग्रमें प्वायंट लगा कर करने-धरनेके विकल्पोंसे विरत होकर केवल उसका तमाशा देखे । तब तुझे सब कुछ सहज होता दिखाई दे । अहंकारको भूमिमें बैठ कर इस प्रकारका दर्शन सम्भव नहीं। हे प्रभु ! मैं तुझे किसी प्रकारका कष्ट देना नहीं चाहता, न ही तेरो स्वतन्त्रता छोनकर तुझे पंगु बनाना चाहता हूँ। विश्वकी कार्य-कारण व्यवस्थाका तात्त्विक स्वरूप दर्शाकर मैं केवल तेरा विवेक चक्षु खोलना चाहता हूँ, जिससे कि तू अपनी भूलको पहचान सके। तब तुझे यह भान हो जायेगा कि अपने जिस संकीर्ण तथा मिथ्या कर्तृत्वको तू अपना पुरुषार्थ कहता है वह व्यवहार भूमिपर पुरुषार्थके नामसे प्रसिद्ध होते हुए भी परमार्थ भूमिपर अपुरुषार्थ है, और जिस पारमार्थिक ज्ञातृत्वको तू अकर्मण्यता कहता है वह ही वास्तवमें तेरा सच्चा पुरुषार्थ है जिसके हस्तगत हो जानेपर तू अणुसे महान बन जायेगा, बिन्दुसे सागर बन जायेगा, अपूर्णसे पूर्ण बन जायेगा, तेरा भव-भवका क्षोभ शान्त हो जायेगा, समता तथा शमताको हस्तगत करके तू सदाके लिये कृतकृत्य हो जायेगा। तब कुछ भी करना तेरे लिये शेष नहीं रह जायेगा। ३. तात्त्विक कर्न-व्यवस्था पूर्ण 'अहं' का अहंकारके रूपमें संकोर्ण हो जाना, अथवा समग्रको छोड़कर एक-एक पर अंगुली टिकाना ही वह अज्ञान तथा अविद्या है जिसे कि अन्य दर्शनकार माया कहते हैं। सत्यको असत्य और असत्यको सत्य कर दिखाना उसका कार्य है। जिस प्रकार एक घड़ा ओंधा रखा जानेपर उसके ऊपर सभी घड़े ओंधे रखे जाते हैं, उसी प्रकार पूर्णसे अपूर्ण हो जानेपर उसकी सकल वृत्तियां अपूर्ण हो जाती हैं। अपूर्णताके द्वारा अपूर्णताकी प्राप्तिका सकल प्रयास विफल हो जाता है। विपरीत इसके भीतरमें विकल्पों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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