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________________ ३१-पंच लब्धि २०१ है-अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण । अधःकरणमें 'विकासको श्रेणी जघन्य होती है, अपूर्वकरणमें मध्यम और अनिवृत्तिकरणमें उत्कृष्ट । अधःकरणमें विकासको गति अत्यन्त मन्द होती है, अपूर्वकरणमें कुछ अधिक और अनिवृत्तिकरणमें बहुत अधिक। अधःकरणमें अनेक जीवोंके परिणामोंकी तरतमता बहुत अधिक होतो है, अपूर्वकरणमें बहुत कम और अनिवृत्तिकरणमें nill अर्थात् सर्वथा नहीं। यहां पहुंचनेपर युगपत् प्रवेश करनेवाली सभी जीवोंकी परिणाम-विशुद्धि समान होती है, और विशुद्धिमें प्रतिक्षण वृद्धि करनेकी उनकी गति भी समान होती है। यहां आनेपर सभी जीव बड़े वेगंके साथ तत्त्वालोककी ओर दौड़ लगाते हैं, और अन्तमें उसे हस्तगत करके संसार तटके निकट पहुँच जाते हैं। ( * विवेक, वैराग्य, संयम और तितिक्षा द्वारा इन्द्रियों का दमन किए बिना वासना के बन्धन से मुक्ति संभव नहीं है। * अहं और मम से ही समस्त संसार बन्धन में - पड़ा है इसका छोड़ना ही मोक्ष है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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