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(५) कहेवू एवं ने के,अमे कोइदेशावरे लख्यु नथी,तथा ल खाव्युं पण नथी, एरीतें तेमनुं कहेवू जे. बीजं सजा थश्ने तेमांमुनि श्री आत्मारामजी महाराज हास्या एवं देशावरथी लखाण अहिंयां आवे जे; पण ना
जी ए वात बधी खोटी ने, केमके ? अत्रे सना था नथी तो दारवा जीतवानी वात बिलकुल खोटी बे, ते जाणजो. संवत १ए४१ ना कार्तिक शुद ६ वार सनेठ तारिख २५ मी माहे अक्टोंबर सने १७४ ली प्रेमालाइ हेमानाश्ना प्रणाम वांचजो.
इत्यादि बडे बडे तेवीश चौवीश शेठोंकी सही स हित पत्र उपवाके नेजे, चोमासा वीतत दया पीले मुनि श्री आत्मारामजी श्री सिगिरिकी यात्रा क रके सूरत शहेरमें चतुर्मास रहे, तहांसें पीछे श्रीपा लीताणे चोमासा करा जब वहांसे विहार करके गाम श्रीमामलमें फाल्गुन चतुर्मास करा, तहां मुनि आत्मारामजी महाराजके पास राधनपुरनगरका मुख्य जानकार श्रावक गोडीदास मोतीचंदजी आयके क हेने लगा के राधणपुर नगरमें रत्नविजयजी आये है, वो ऐसी प्ररूपणा करते है के प्रतिक्रमणके आ दिमें तीन थुइ कहनी परंतु चोथी शुश नही कहनी.
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