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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ३५ फुरोज बादशाहका प्रतिबोधनेवाला तथा श्रीजयचं सूरिजी श्नोने क्रमसें विचारामृतसंग्रहमें अपनी अप नीरची तीन समाचारीयोंमें, यतिदिनचर्या में, समाचा रीस्वकीयमें, विधिप्रपामें, प्रतिक्रमणा गर्नित हेतु ग्रंथ में, चैत्यवंदनामें चार चार थुई कहनी कथन करी है. तथा श्रीमान विजय उपाध्यायजीने तथा श्रीमत्यशो विजय नपाध्यायजीने तथा श्रीनमि नामा साधुने त था तरुणप्रनसूरिजीने क्रममें धर्मसंग्रहमें, प्रति क्रमणाहेतुगनितमें, षडावश्यकमें, षडावश्यक बाला वबोधमें, चार थुई कहनी कही है, इत्यादि दूसरेनी अनेक आचार्योने चार शुई कहनी कही है, इन स व आचार्योंकी गुरुपरंपरा और शिष्यपरंपरासें हजारो श्राचार्योने चारथुई मान्य करी है. इस वास्ते हमकों बडा शोक नत्पन्न होताहै के श्रीजिनशास्त्रोंके और ह जारो श्राचार्योंके और श्रीसंघके विरु६ पंथ चलाने वाले रत्नविजयजी और धन विजयजी इनका क्योंकर कल्याण होवेगा! और श्नोंका कहना मानने वाले जोले श्रवकोंकीनी क्या दशा होवेगी ?
अथाये कितनेक पूर्वोक्त ग्रंथोंका पाठ लिखते है. जिसके वांचनेसें जव्यजीवोंकों मालुम हो जावे के, र
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