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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। २५ तीन श्लोक प्रमाण जहांतक कहियें तहांतक देहरे में रहनेकी आशा है, कारण होवेतो उपरांतनी रहे ॥ जैसा पाठ शास्त्रमें है तो फेर आप तीनथुइ की चैत्यवंदना क्यों नही मानतेहो ? ॥ - नत्तरः-हे सौम्य तेरेकों इस गाथाका यथार्थ ता त्पर्य मालुम नही है. इस वास्ते तुं तोतेकी तर ती न थुइ तीन थुइ कहता है. इस गाथाका यह ता त्पर्य है, सो तुं सुणके विचार ॥ नाष्यं ॥ सुत्ते एगवि हच्चिय, नणियातो नेय साहण मज्जुत्तं ॥ श्य) लमईकोई, जं पर सुत्तं इमं सरिन ॥ २२ ॥ तिनिवा कट्टई जाव, शुश्न तिसिलोश्या ॥ ताव तब अ गुन्नायं, कारणेण परेणवि॥ २३ ॥ जण गुरुतं सु तं, चियवंदणविहि परूवगं न नवे ॥ निकारणजिण मंदिर, परिनोग निवारगत्तेण ॥ २४ ॥ जं वा सदो पयडो, परकंतर सूयगो तहिं अति ॥ संपुन्नं वा वंद , कह वा तिन्निनथुई ॥ २५॥ एसोवि दु जावडो, संजवद्यश् श्मस्त सुत्तस्स ॥ ता अन्न सुत्तं, अन्नब न जोश्नं जुत्तं ॥ २६ ॥ ज एत्तिमेत्तं विय, जिण वंदण मणुमयं सुएढुंतं ॥ श्योत्ताइ पवित्ती, निर लिया होय समावि ॥ २७ ॥ संविग्गा विहि रसिया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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