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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ... उत्तरः-हे नव्य जो वस्तु आचरणासें करी जावे तिसकों अर्वाचीन कहते हैं. प्रश्नः-आचरणा किसकू कहते हैं ? ___ उत्तरः-नत्तराध्ययनकी बृहवृत्तिका करणहार महाप्रनाविक स्थिरापायगबकममन आचाय श्री वादिवेताल शांतिसरिजीने संघाचार नामक चैत्यवं दन महानाष्य करा है, तिसमें आचरणाका स्वरूप ऐसा लिखा है ॥ जाण्यपातः ॥ तीसेकरण विहाणं, नया सुत्ताणुसार किंपि ॥ संविग्गायरणा, किंची नयंपि ते जणिमो ॥ १५ ॥ पुबइ सीसो जयवं, सुत्तो श्यमेव साहि जुत्तं ॥ किं वंदणादिगारे, प्राय रणा कीर सहाया ॥ १६ ॥ दीस सामन्नेणं, वुत्तं सुत्तमि वंदणविहाणं ॥ नघः आयरणान, विसेस करणकमो तस्स ॥ १७ ॥ सुयणमेत्तं सुत्तं, आयरणा जय गम्म तयसो ॥ सीसायरियकमेण हि, नयंते सिप्पसबाई ॥ १७ ॥ अन्नंच ॥ अंगो वंग पश्नय, नेया सुअसागरो खलु अपारो ॥ को तस्स मुण मनं, पुरिसो पंमिच्चमाणी वि ॥ १५ ॥ किंतु सुहका ण जण गं, जं कम्मखयावहं अणुशाणं ॥ अंगसमुद्दे रुंदे, जणियं चियतं जन जणियं ॥ २० ॥ सब पवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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