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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः । प्रदक्षिणा, पूजादि संयुक्त इसकों उत्कृष्ट चैत्यवंदना मानता है ॥ ३ ॥
यह तीन मत अजयदेव सूरिजीने दिखलाए प रंतु इन तीनो मतो सें अनयदेवसूरिजीने सम्मत वा असम्मत कोश्नी मतकों नही कहा. तो फेर रत्न विजयजी अरु धनविजयजीकों कहेते₹के अनयदेव सूरिजीने पंचाशकमें चोथी थुई अर्वाचीन कही है. जला, कदापि ऐसा कहना सादर सुबोध पुरुषोंका हो शक्ता है. क्योंके अनयदेव सूरिजीने तो किसीके मतकी अपेक्षासें चोथी थुई अर्वाचीन कही है, परंतु स्वमतसम्मत न कही है.
अब बुद्धिमानोकों बिचारना चाहियेंके कल्पनाष्य गाथाके अनुसारे मध्यम चैत्यवंदनामें चारथुई कही, अने पंचशकस्तव रूप उत्कृष्ट चैत्यवंदनामें आठ थुई कहनी कही. इन दोनों पंचाशकके लेखोंकों बोडके एक मध्यके तीसरे पदकोंही मानना यह क्या स म्यग् दृष्टियोंका लक्षण है? ___ कदापि रत्नविजयजी अरु धनविजयजी असें मा न लेवेके शास्त्रमें तीन थुनी किसीके मतसें कही है. और चार थुनी कही है ये दोनो मत कहे है; श्न
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