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________________ १५४ चतुर्थस्तुति निर्णयः । श्री जगवंतके कहे आगम अधिष्ठित नहीं है इस वास्ते श्रुतदेवताकी यस्ति है. श्रुत देवता " किं चित्करी " ऐसा कहना मिथ्या है. क्योंकि जो कोइ श्रुतदेवताका खालंबन करके कायोत्सर्गादि करता तिस्के कर्मक्षय होते है. इस वास्ते श्रुतदेवताकी आशातना त्यागके चतुवर्णसंघको कर्मक्ष्य करणे वास्ते अवश्यमेव प्रतिदिन श्रुतदेवताका कायोत्सर्ग करना और थुनी अवश्य कहनी चाहियें. प्रश्नः - सम्यग्दृष्टि वैयावृत्त्यादि करनेवाले देव तायका कायोत्सर्ग करना और चोथी थुइमें तिनकी स्तुति करणी तिस्सें क्या फल होता है. उत्तरः- पूर्वोक्त कृत्य करनेसें जीव सुजनबोधि हो नेके योग्य महा शुकर्म उपार्जन करता है. और तिनकी निंदा करनेसें जीव दुर्लनबोधि होने योग्य महा पापकर्म उपार्जन करता है, वैसा पाठ श्रीग यांग सूत्र जिसकों रत्नविजयजी, धनविजयजी मान्य करते है तिसमें है सो इहां लिख देते है | पंचहिं गणेहिं जीवा नबोहियत्ताए कम्मं पकरेंति तं जहा अरहंताणमवन्नं वदमाणे अरिहंतपणात्तस्स धम्मस्स यवन्नं वदमाणे यायरियनवद्यायाणं व्यवन्नं वदमाणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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