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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १०१ पीले प्रतिक्रमणे अवसानमें श्रुतदेवता अरु क्षेत्र देवताका कायोत्सर्ग करणा, और श्नोंकी थुइयां कहनी. यह कथन पंदरावी अरु सोलावी गाथामें करा है. जब श्री अजयदेवसूरि नवांगी वृत्तिकारक के शिष्य श्रीजिनवल्लनसूरिजीकी बनवाइ समाचा रीमें पूर्वोक्त लेख है तब तो श्रीअनयदेवसूरिजीसें तथा बागु तिनकी गुरु परंपरासें चार घुश्की चैत्य बंदना और श्रुतदेवता अरु देवदेवताका कायोत्स गर्ग करणा और तिनकी धुश् कहनी निश्चयही सिम होती है, तो फेर इसमें कुबनी वाद विवादका ज गडा रह्या नही, इस वास्ते रत्न विजयजी अरु धन विजयजी तीन थुश्का कदाग्रह बोड देवे, तो हम इनेकों अल्पकर्मी मानेंगे ॥
तथा बृहत्खरतर गन्डकी समाचारीका पाठ लि खते हैं ॥ पुवोग्निंगीया पडिकमण समायारी पुणए सा ॥ साव गुरुहिसमं, इक्कोवा जावंति चेश्याइं ति गाहा ॥ उगथुत्तिपणिहाण वचं चेश्या वंदितु चउरा इखमासमणेहिं आयरियाई वंदिय नूनिहियसिरो सबस्स देवसिय श्वाश दंगेण सयलाश्यार मिनुक्क डं दानं नयि सामायिय सुत्तं जणि नामि ता
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