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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। एए झुत ज्ञानगर्नित एसे नवीन एक सौ ग्रंथ रचे है, और जिनोने अनेक कुमतियोंका पराजय कीया, और कुकर क्रिया करी, षट्शास्त्र तर्कालंकारका वे ता, असे श्रीमपाध्याय श्रीयशोविजयगणीजीने जि स धर्मसंग्रह ग्रंथकू शोध्या है.
अबजानना चाहीयें कि ऐसे ऐसे महान पुरुषोके व चन जो कोई तुन्नबुदि पुरुष न माने तो फेर ऐसे तुबबुझिवालेका वचन मानने वालेसें फेर अधिक मूर्ख शिरोमणि किसकू कहना चाहियें ? ।
हमकू यह बड़ा आश्चर्य मालुम होता है के रत्न विजयजी अरु धनविजयजी अपनी पट्टावलीमें श्री जगचंसरिजी तपा बिरुदवालोंकू अपना आचार्य लि खते है, तद पी. देवसूरि, अनसूरि, अर्थात् विजयदे वसूरि, विजयप्रनसूरि प्रमुख लिखते है, अरु लोकोंके
आगें तपगबका नाम तो नही लेतें है. कोइ पूरे तिनकू अपने गढका नाम सुधर्मगह बतलाते हैं. ऐसा कहनेसें तो इनोकी बड़ी धूर्तता सिद्ध होती है. क्योंके यह काम सत्यवादियोंका नही है. जेक र एक लिखना और दूसरा मुखसें बोलना? और तपगडकी समाचारी जो श्रीजगचंश्वरि, देवेंइसरि
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