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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। वित्र कडिपट्टो ॥४॥ तबय धरे हिथए, ऊहक्कम दिएकए अध्यारे॥पारिन एणमोकारेण. पढतच नवीस थयदं ॥५॥ संमासगे पमधिय, नवविसिध अलग्ग विषय बाहुकुन ॥ मुहणं तगंच कायं, पेहेए पंचवीस ह ॥ ६ ॥ नयिहिन सविणयं, विहिणा गुरुणो करे किश कम्मं ॥ बत्तीसदोसरहिवं, पणवीसावस्सगविसुदं ॥७॥ अह सम्म मवणयंगो, करजुग विहि धरिष पुत्ति रयहरणो ॥ परिचिंतिथ अ स्यारे, जनकम्मं गुरु पुरोविथडे ॥ ॥अह नववि सित्तु सुत्तं, सामाश्य माश्य पढिय पयः ॥ अनुति उम्हि श्वाइ, पढ उहनि विहिणा ॥ए॥ दाकण बंदणं तो, पणगाइ सुज सुखामए तिन्नि ॥ कि क म्म किरियायरिब, माइ गाहातिगं पढ ॥१०॥ इत्र सामाश्य उस्सग्ग, सुत्त मुच्चरित्र काउस्सग्ग नि॥ चिंतश् उडोअगं, चरित्त अश्यार सुदिकए ॥११॥ विहिणा पारिश्र सम्मत्त, सुदि हेच पढश नजोकं ॥ तह सबलोथ अरिहंत चेश्याराहणुस्सग्गं ॥ १२॥ कानं उजोअगरं, चिंतिथ पारे सुसंमत्तो ॥ पुरकर वरदीवढे, कढ सुअ सोहण निमित्तं ॥१३॥ पुण प ण वीसुस्सासं, तस्सगं कुण पारए विहिणा ॥ तो
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