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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ७१ रमें ज्ञान दर्शन संयुक्त जो दासनी दो जाऊं तो अन्ना है. परंतु मिथ्या मोहमति वाला चक्रवर्तीराजा नी न हो. वहां कोई प्रश्न करता है. ते देव जो है वो समाधि अरु बोधि देनेकों समर्थ है वा नही है ? जे कर कहोगेकि असमर्थ है तबतो तिनसें जो प्रार्थ ना करनी है सो व्यर्थ है, जे कर कहोगे कि समर्थ है तो दूरनव्य और अनव्योंकों क्यों नहीं देते है ? जे कर हे आश्चर्य तूं ऐसे मानेगाके योग्य पुरुषोंकों देते हैं तबतो योग्यताही प्रमाणनत दुश्. तब बकरीके गलेके थणासमान निरुपयोगी तिन देवतायोंकी कल्पना करणेसें क्या फल है ? __ अत्रोत्तरं ॥ सर्वत्र योग्यताही प्रमाण है, परंतु त
सहने असमर्थ होणहार वादीके मत मानने वा लोकी तरें हम एकांतवादी नही है, किंतु सर्व न्या यात्मक स्याहादवादी है. सामग्रीही जनक है, इस वचनके प्रमाणसें जानना. सोई दिखाते है.
जैसे घट निष्पत्तिमें माटीकों योग्यतानी है तोजी कुंभार, चक्र, चीवर, मोरा, दमादिकनी सहकारी का रण होवे तबही घट बनता है. तैसे यहांनी जे कर जीवमें योग्यताके हूएनी तथा तथा विघ्न समूहोंके
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