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________________ कंपित हो गयी, मछित हो गयी। उसकी यह अवस्था देखकर अमरप्रभ ने वानरचित्र बनाने वाले को दण्डित करना चाहा पर वृद्ध मन्त्री ने यह समझाया कि ये वानर कुलपरम्परा से मांगलिक चिन्ह के रूप में प्रयुक्त होते आये हैं। इन्हीं के नामपर वानरद्वीप है। श्रीकण्ठ इन वानरों से अत्यन्त प्रेम करते थे। अमरप्रभ यह सुनकर सन्तुष्ट हुआ और वानरों के चिन्ह बनवाकर मुकुट में धारण किया, ध्वजाओं में चित्रित किया। अमरप्रभ के पुत्र कपिकेतु आदि ने भी वानरों को मांगलिक प्रतीक मानकर उनका आदर किया । इसी से वानरवश चला। रावण सुग्रीव, नमि, बिनमि आदि विद्याधर इसी वानरवंश से संबद्ध है (17)। किष्किन्धा नगरी में वालि, सुग्रीव विद्याधर थे। उनकी श्रीप्रभा नामक बहिन थी। श्रीप्रभा को रावण अपनाना चाहता था पर वाली तैयार नहीं हुआ। युद्ध का समय आया तो उसने संसार के स्वभाव का परिज्ञानकर जैन दीक्षा धारण कर ली। फिर सुग्रीव ने श्रीप्रभा को रावण के पास पहुंचा दिया । खरदूषण ने रावण की बहिन चन्द्रनखा का अपहरण कर लिया। एक बार मुनि बाली के प्रताप से रावण का पुष्पक विमान आकाश में रुक गया । तब दशानन ने कैलाश पर्वत को उखाड़कर समुद्र में फेंकना चाहा । पर बाली मुनि ने पर्वत को अपने पैर के अंगठे से दबा दिया जिससे दशानन विचलित हो गया। चूंकि संसार को अपने शब्द से शब्दायमान कर दिया था, इसलिए दशानन को तभी से रावण कहा जाने लगा। बालो का यह प्रभाव जानकर दशानन ने उसे प्रणाम किया और विपत्ति से मुक्ति पाई । अग्निशिख नामक राजा ने सुग्रीव के साथ अपनी पुत्री सुतारा का विवाह किया। साहसगति विद्याधर भी तारा के साथ विवाह करना चाहता था पर उसकी अल्पायु जानकर अग्निशिख ने उसे तारा नहीं दी। बाद में रावण के साथ सहस्ररश्मि का युद्ध हुआ और फिर सहस्र रश्मि ने मुनिदीक्षा धारण कर ली। बाली जैसे महामुनि द्वारा सुग्रीव की पत्नी तारा के हरण को बात जो वैदिक पुराणों में कही गई है, कहां तक ठीक है ? सहसगति ने सुतारा को पाने के लिए हिमवत् पर्वत पर विद्या-सिद्धि प्राप्त करना प्रारंभ कर दिया (18)। एक दिन जब सुग्रीव वनक्रीड़ा के लिए गया था सहस्रगति ने विद्याबल से उसकी प्यारी पत्नी तारा का हरण करने का विचार कर सुग्रीव जैसा ही रूप धारण कर तारा के पास पहुंच गया। इतने में सुग्रीव भी वहां वनक्रीड़ा से वापिस हो गया। वहां वह अपने ही समान कृत्रिम सुग्रीव को तारा के पास बैठा देखकर क्रोधित हो गया। दोनों युद्ध की तैयारी करने लगे। सभी लोग समरूप देखकर किंकर्तव्य विमूढ हो गये । अंग कृत्रिम सुग्रीव के पास गया और अंगद अपनी माता तारा के कहने पर सत्य सुग्रीव के पास गया। सात सात अक्षौहिणी सेना दोनों के पास पहुंच गई। बालि के पुत्र चन्द्ररश्मि (ससिकिरण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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