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________________ ने कहा- हाँ, ऐसा उपलब्ध है । तब मनोवेग ने कहा- बाण के सूप छिद्र से दस करोड़ सेना सहित शेषनाग आ सकता है । रसातल में से तो कमण्डलु के छिद्र में से हाथी कैसे नहीं निकल सकता ? विप्रों ने कहा- ठीक है, यह मान लिया। परन्तु कमण्डलु में हाथी का समाना, हाथी के भार से भिण्डी वृक्ष का न टूटना, तथा कमण्डलु में हाथी की पूछ का बाल अटक जाना, यह सब कैसे संभव है ? ।। 13 ।। मनोवेग ने पुन: कहा- क्या यह सब तुम्हारे पुराणों में नहीं है ? कहा जाता है, करांगुष्ठ के बराबर अगस्त्य मुनि ने समुद्र जल को तीन चुल्ल में भरकर पी लिया। जब अगस्त्य मुनि के उदर में समुद्र का समस्त जल समा गया तो मेरे कमण्डल में हाथी क्यों नहीं समा सकता ? इसी तरह कहा जाता है, एक समय सारी सृष्टि समुद्र में बह गई। यह समझकर ब्रह्मा व्याकुल होकर इधरउधर उसे खोजते रहे । तब उन्होंने अलसी के पेड़ पर सरसों बराबर कमण्डल को रखे अगस्त्य मुनि को देखा । फिर अगस्त्य मुनि के पूछने पर ब्रह्मा ने अपनी सष्टि खो जाने की चिन्ता व्यक्त की। अगस्त्य मुनि ने चिन्तित देखकर उस सष्टि को अपने कमण्डलु के भीतर रखा बताया ॥ 14 ।। ब्रह्मा ने जब देखा तो पाया कि कमण्डलु के भीतर वटवृक्ष के पत्ते पर पेट फुलाये विष्णु भगवान सो रहे हैं । ब्रह्मा के पूछने पर विष्णु ने कहा कि तुम्हारी सष्टि एक समुद्र में बही जाती थी। उसे मैंने अपने पेट में रख ली है। इसलिए अब निश्चित होकर सो रहा हूँ। सृष्टि रखी होने के कारण पेट फूला है और सष्टि सुरक्षित है । यह जानकर ब्रह्मा ने प्रसन्नता व्यक्त की। पर उन्होंने उसे देखने की उत्कण्ठा अवश्य प्रकट की। विष्णु के कहने पर उन्होंने उदर में जाकर सष्टि को देखा और विष्णु की नाभि-कमल के छिद्रभाग से बाहर निकल आये । परन्तु निकलते समय वृषण के बाल का अग्रभाग अटक गया। निकलना संभव न जानकर उसी बालाग्र को कमलासन बनाकर वे बैठ गये। तभी से ब्रह्माजी का नाम 'कमलासन' प्रसिद्ध हो गया ।। 15 ।। ___ मनोवेग के पूछने पर विप्रों ने कथानक की सत्यता को स्वीकार किया। तब उसने कहा- जब ब्रह्मा का केश नाभि-छिद्र में अटक गया तो हाथी की पूंछ का भाग कमण्डलु के छिद्र में कैसे नहीं अटक सकता ? जब समस्त सृष्टि सहित कमण्डलु के भार से अलसी वृक्ष की शाखा नहीं टूटी तो एक हाथी के भार से भिण्डी वृक्ष कसे टूट सकता है ? जब अगस्त्य के कमण्डलु में सारी सष्टि समा गई तो मेरे कमण्डलु में मुझ सहित हाथी क्यों नहीं समा सकता ? यह भी विचारणीय है कि सारी सृष्टि को पेट में समा लेने पर विष्ण, अगस्त्य, ब्रह्मा, आदि कहां बैठे ? अलसी वृक्ष किस पर रुका रहा ? यह सब पूर्वापर विरोधी कथनों से भरे आपके पुराण सत्य हो सकते हैं पर. हमारा कथन सत्य नहीं हो सकता । यह कहां का न्याय है. ? ॥16॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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