SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तब मण्डपकौशिक ने कहा कि मुझ वृद्ध को कौन अपनी कन्या देगा ? तपस्वियों ने कहा- तुम विधवा को भी स्वीकार कर सकते हो। स्मृतियों में स्पष्ट कहा है कि पति के परदेश चले जाने पर, नपुंसक होने पर, रोगी दरिद्री अथवा भाग जाने पर, जातिच्युत हो जाने पर तथा मर जाने पर, इन पांच आपदाओं में स्त्री के लिए दूसरा पति किया जा सकता है । ऋषियों की आज्ञा से मण्डप ने विधवा के लिए गृहस्थावस्था में प्रवेश किया। फलतः उसकी छाया नाम की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या हुई । जब वह आठ वर्ष की हो गई तो मण्डप के मन में तीर्थयात्रा करने का विचार हुआ । पर समस्या थी कि छाया को किसके पास छोड़ा जाय । भय था कि जिसके पास भी छोड़ा जायेगा वह उसे अपना लेगा। इस संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति दिखाई नहीं देता जो स्त्री से पराङ्गमुख हो । यह कन्या यदि महादेव को दी जाये तो ठीक नहीं है । वे गौरी पार्वती के साथ कैलाश पर निवास करते हैं । सन्ध्यावन्दन के निमित्त आयी गंगा को स्त्री रूप में क्रीड़ा करते हुए उन्होंने देखा और काम बाण से विद्ध हो गये । वे सोचने लगे कि यह किसकी कन्या है । यह तो उर्वशी से कम नहीं है । अन्ततः उन्होंने गंगा से अपनी इच्छा व्यक्त की। उसने कहा कि वह परपति की अभिलाषा नहीं करती और फिर तुम्हें अपनी पति से भी इस विषय में पूछ लेना चाहिए। अन्ततः महादेव ने, कहा जाता है, गगा का सेवन कर लिया। विष्णु अपनी लक्ष्मी को छोड़कर सोलह हजार गोपियों का सेवन करते हैं। यहां उनके साथ विविध क्रीड़ाओं का वर्णन मिलता है । परन्तु पुरुषोत्तम होने पर परदाराओं के साथ रमण करना शोभास्पद नहीं माना जा सकता । जिस ब्रह्मा ने देवांगना के नृत्यमात्र देखने के लिए अपनी तपस्या भंग कर दी वह ब्रह्मा भी सुन्दर कन्या को पाकर क्या नहीं करेगा ? 18-120 तिलोत्तमा कथा एक समय अचानक इन्द्र का आसन कंपित हो गया। तब इन्द्र ने वृहस्पति से इसका कारण पुछा । वृहस्पति ने कहा-देव ! ब्रह्मा आपके राज्य लेने की इच्छा से पिछले चार हजार वर्ष से तप कर रहे हैं, उसी तप के प्रभाव से आपका यह आसन कंपित हो गया है। उसे नष्ट करने के लिए किसी सुन्दर स्त्री का उपयोग किया जा सकता है । तब विश्वकर्मा ने समस्त सुन्दर स्त्रियों का तिल. तिल का रूप ले तिलोत्तमा नामक अप्सरा बनाई और उसे ब्रह्मा के पास जाकर उनके तपोभंग करने का आदेश दिया। तिलोत्तमा ने अपने पूरे हाव-भाव, विभ्रम और नवरसमयी नृत्य से ब्रह्मा को आकृष्ट करने का प्रयत्न किया । ब्रह्मा उसके विलासमयी नृत्य और भंगिमाओं को देखकर विचलित हो गये । वे कभी उसके चरण की ओर तो कभी जंघा व उरस्थल पर दृष्टिपात करते, तो कभी जंघाओं में, कभी नाभि पर, कभी पीनस्तनों पर, कभी मुख पर, कभी कुंतल पर दृष्टिपात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy