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________________ कर पांच चोटियां रखाकर शराबों की माला पहनाकर नगर में घुमाया जाये तभी ठीक होगा। इस तरह क्रोधाविष्ट होकर उसने मेरा वायां पैर भी तोड़ दिया। तब से मेरा नाम 'कूटहंसगति' हो गया। दूसरे मूर्ख के चुप हो जाने पर तीसरे ने अपनी कथा कहना प्रारंभ किया । 150 मेरी पत्नी रात्री को सोते समय बोलती नहीं थी। तब हमने कहा कि जो भी हम दोनों में से वोलेगा उसे घी में तले हुए गुड़ के दस पूए देने पड़ेंगे। उसने इस शर्त को स्वीकार कर लिया। एक दिन चोरों ने घुसकर हमारी सारी संपत्ति लूट ली। वह फिर हमारी पत्नी के अधोवस्त्र खोलने लगा तब मेरी पत्नी ने कहा कि निर्लज्ज ! तूं अभी भी देख रहा है। मेरा अधोवस्त्र खोले जाने पर भी चुप खडा है। तब मैंने हंसकर कहा कि तू अपनी शर्त हार गई अब दस पूए देना पडेंगे। मैंने अपनी सारी संपत्ति चोरों को लूटा दी । तभी से मेरा नाम 'बोद' पड गया ।।6।। चतुर्थ मूर्ख ने अपनी कथा सुनाई । उसने कहां-एक बार मैं अपनी पत्नी को लेने ससुराल गया। वहां मेरी सास ने बडा स्वादिष्ट भोजन परोसा । संकोच में मैंने उसे छोड दिया। दूसरे दिन लगातार उस गांव की नारियों के आवागमन के कारण भोजन नहीं कर सका। तीसरे दिन मैं भूख से तडपने लगा । संयोगवशात् पलंग के नीचे झांका तो पाया कि वहां एक वर्तन में जल में चावल पडे हुए हैं ।।1711 अवसर पाकर भूख से व्याकुल होने के कारण मैंने चावलों से अपना मुंह भर लिया । इतने में मेरी पत्नी वहां आ पहुंची। लज्जावश में वैसे ही फूले गाल लिये चुपचाप बैठा रहा। उसने फूले गाल, मुख तथा मिचे हुए नेत्रों को देखकर घबडाकर अपनी मां से कहा कि देखो तुम्हारे दामाद को क्या हो गया है ? मां ने मुझे मरणासन्न जानकर मेरे गालों को दबाया पर मैं पूरी ताकत से उन्हें कठोर बनाये रखा। रोती हुई पत्नी की आवाज सुनकर गांव की अनेक महिलाएँ इकट्ठी हो गईं। उनमें से एक ने कहा कि सप्त माताओं की पूजा न करने के कारण यह स्थिति आई है। दूसरी ने कहा कि यह किसी देवता का रोष-दोष है। तीसरी ने कहा कर्णमूल है, चौथी ने कहा-यह तो गंडमाल है, पांचवी ने कहा यह कर्णसूचिका है, छटी ने कहा-यह गला रोग है । और भी महिलाओं ने इसी तरह अपने -अपने नाना-विध विचार व्यक्त किए ।।8।। ___इसी बीच वहां पर शस्त्रवैद्य आ गया। महिलाओं ने उसे बुलाकर मुझे दिखाया। उसने मेरे गालों को दबाकर देखा और देखा कि पलंग के नीचे तंदुल-पात्र रखा है । सारी स्थिति को समझकर उसने मेरी सासू से कहा कि इसे तन्दुल व्याधि हो गई जिसके कारण मरण भी संभावित है। तुरंत इलाज करना आवश्यक है । यदि तुम मुझे भरपुर संपत्ति दोगी तो मैं तुम्हारे दामाद के प्राण बचा सकूँगा। सासू सहर्ष तैयार हो गई। तब शस्त्रवैद्य ने शस्त्र द्वारा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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