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14. श्रावक व्रतों का वर्णन । अष्टमूल गुण 19.12
व बारह व्रत 15. चार शिक्षाव्रत-सामायिक, प्रोषधोपवास, 19.13-101 इसमें अधिक
अतिथिसं विभाग, भोगोपभोगपरिमाण । विस्तृत विवेचन है । सल्लेखना, रात्रिभोजनत्याग, जिनमंदिर
दर्शन, जिनपूजन पर भी जोर दिया है । 16. पवनवेग द्वारा श्रावक व्रतों का ग्रहण ।
इसमें रात्रिभोजन त्याग भी है।
ग्यारहवीं सन्धि
1. मेवाड़ का वर्णन
यह वर्णन यहां नहीं है। 2. मेवाड़ की उज्जयिनी का वर्णन 3-10. निशि भोजन कथा
20.1-12 रात्रिभोजन कथा नहीं है । उसके
दुष्परिणाम अवश्य दिये हैं। 11-21. आहार दान कथा
20.23-52 प्रोषधोपवास, आहारदान आदि का वर्णन
स्पष्ट व्यसन त्याग। 22. पंचणमोकार मंत्र जप, फल, अतिथि 53-63 ग्यारह प्रतिमाओं संविभाग, अभयदान आदि कथायें का वर्णन । 64-80 सम्य
ग्दर्शन आदि का वर्णन ! 23-27. अंत में हरिषेण प्रशस्ति और धर्मपरीक्षा 81-90 पवनवेग का जैनलिखने का उद्देश्य ।
धर्म में दीक्षित होना, धर्मपरीक्षा का उद्देश्य प्रशस्तिभाग में दिया गया
__ इन दोनों धर्मपरीक्षाओं की तुलना करने पर यह सहजता पूर्वक समझ में आ जाता है कि अमितगति ने विषय सामग्री हरिषेण से ली और उसे अपनी प्रतिभा से विस्तार देकर दो माह में ही अपनी धर्मपरीक्षा को समाप्त कर दिया (अमितगतिरिवेदं स्वस्य मासद्वयेन, प्रथित विषदकीति: काव्यमुद्भूतदोषम्, 20-90)। शैली भी दोनों की समान है। मनोवेग कल्पित कथायें बनाकर विप्रगण के समक्ष प्रस्तुत करता है और जब वे उन कथाओं पर विश्वास नहीं
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