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________________ 14. मधुबिन्दु कथा समाप्त 2.8-21 यहां इस कथा में कुछ अन्तर है पर विस्तार समान है। 15. धर्म का प्रभाव 2.22-79 यहां इसका विस्तार अधिक है। यहीं योगिराज द्वारा कुशल प्रश्न भी है 2.80-89. 16. मुनि से प्रश्न और उनका उत्तर । पवनवेग के 2.90-95 द्वितीय परिच्छेद मिथ्यात्व को दूर करने का मार्ग बताना । समाप्त । 17. मनोवेग और पवनवेग के बीच संवाद । मनोवेग तृतीय परिच्छेद । मित्रता द्वारा जिनदर्शन की बात कहकर पाटलिपुत्र का का विशेषता पूर्वक दोनों उल्लेख करना। के बीच संवाद 3.1-26 18. पाटलिपुत्र की विशेषतायें । बाद में 3.27-43 19-20. पवनवेग ने मनोवेग से कौतुक प्रदर्शन करने का आग्रह किया | द्वितीय संधि 1. दानों मित्रों का पटना-गमन 3.44-58 2-3. दोनों कुमारों का रूप वर्णन और उनका 3.58-68 काव्यात्मक वादशाला में प्रवेश तत्व अधिक है 4-6 शास्त्रार्थ विप्रगण का एकत्रित होना और 3.69-95 तृतीय परिच्छेद उनसे कुमारों का संवाद समाप्त 7-8. षोडश-मुक्कि न्याय की प्रसिद्धि 4.1-39 9. दस मूढों की कथा 4.40-46 10-16. रक्त मूढ कथा (1) बहुधान्यक और उसकी 4.47-76-95 चतुर्थ पत्नी सुन्दरी और कुरगी के बीच परिच्छेद समाप्त। यहां स्त्रियों के स्वभाव का वर्णन विस्तार है जो हरिषेण की ध.प. में नहीं है। 15.1-76 16-17. द्विष्ट मूढ कथा (2) 5.77-97 संसार का स्कन्ध और वक्र । वक्र ने मरने के बाद विस्तृत चित्रण जो हरिषेण स्कन्ध पर आक्रमण किया। की ध. प. में नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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