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________________ (१८) इसमें कुल कडवक 238 हैं जो भिन्न भिन्न अपभ्रंश छन्दों में लिखे गये हैं । कुल ग्रन्थ : 2 70 हैं | ये मेवाड़ निवासी हैं। मेवाड़ ओर मालवा में कोई विशेष दूरी नहीं है । दोनों समकालीन भी है। अमितगति की ध. प. से हरिषेण की ध. प. पहले लिखी गई । अतः अधिक सम्भावना यह है कि अमितगति के सामने हरिषेण की ध. प. रही होगी । हरिषेण की ध. प. विवरणात्मक अधिक है tate अमितगति एक कुशल कवि के रूप में आलंकारिक शैली में प्रत्येक तत्व का वर्णन करते हैं । हरिषेण ने सप्तम संधि में लोक स्वरूप को तथा अष्टम संधि में जैन परम्परागत रामकथा को कुछ विस्तार से लिखा है जबकि अमितगति ने कुछेक श्लोकों में ही उसे निपटा दिया है। हरिषेण ने अन्तिम संधि में रात्रि भोजनकथा का विस्तार किया है पर अमितगति उसको सिद्धान्त रूप उल्लिखित करके आगे बढ गये । इसी तरह अमितगति ने जैन सिद्धान्त, नीतितत्व, प्रकृतिचित्रण, आदि को जिस आकर्षक और काव्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है वह हरिषेण नहीं कर सके । हरिषेण का सन्धि विभाजन अमितगति के अध्याय विभाजन से अधिक युक्ति-संगत है । इन विशेषताओं और विभिन्नताओं के बावजूद लगता है, हरिषेण की धम्मपरिक्खा अमितगति की धर्मपरीक्षा का आधारभूत ग्रन्थ रहा होगा । इन दोनों ग्रन्थों की विषयगत तुलना हम नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं हरिषेण की धम्मपरिक्खा प्रथम सन्धि अमितगति को धर्मपरीक्षा कडवक श्लोक 1. पूर्ववर्ती कवियों का उल्लेख प्रथम परिच्छेद - 1.16 2. जम्बूद्वीप वर्णन 1.17-20 3. विजयार्ध पर्वत वर्णन 1.21-27 4. वैजयन्ती नगरी वर्णन 1.28-31 5. राजा जितशत्रु वर्णन 1.32-36 1.37-47 6 - 7. जितशत्रु की पत्नी वायुवेगा और पुत्र मनोवेग 8. मनोवेग का मित्र पवनवेग, विजयापुरी नगरी के राजा का पुत्र । उसका जैन मंदिर के दर्शनार्थ गमन 9. जंगल में मुनिदर्शन | अवन्ति देश का वर्णन 10. उज्जैयिनी नगरी का वर्णन 11. उज्जैयिनी के वन का वर्णन 12. वन में विराजित जैन मुनि का वर्णन और उनसे प्रश्न 13. संसार वर्णन - मधुबिन्दु दृष्टान्त Jain Education International 1.48-55. प्रियापुरी नगरी का राजपुत्र 1.56-57 1.58-65 1.66 1.67-70 प्रथम परिच्छेद समाप्त और 2. 1-7 द्वितीय परि. प्रारंभ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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