SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करारा व्यंग्य विनोदात्मक ढंग से कसा है उससे उनकी असत्यता और अविश्वसनीयता और अधिक बढ़ जाती है। निशीथ विशेष चर्णी में धुत्तक्खाणग (पीठिका, पृ. 105) के उल्लेख से यह माना जा सकता है कि हरिभद्र के पूर्व भी इन अख्यानों को उपहास का कारण बनाया गया था । पर इसका सबल प्रयोग हरिभद्र ने ही किया है । उन्होंने धूर्ताख्यान में पांच धूर्तशिरोमणि-मूलश्री, कंडरीक, एलाषाढ, शश और खण्डयाणा के माध्यम से इन अविश्वसनीय पौराणिक आख्यानों को प्रस्तुत किया अपनी कल्पित अनुभूत कथाओं के सहारे । हरिषेण की धर्मपरीक्षा (धम्मपरिक्खा) इसी धूर्ताख्यान के पदचिन्हों पर चलनेवाली अनूठी कृति है । इसमें भी मनोवेग अपने अभिन्न मित्र पवनवेग से इसी प्रकार की कल्पित कथाओं का सहारा लेकर महाभारत और पौराणिक आख्यानों का उपहास करता है । इस युग के अन्य जैनावार्यों ने भी यत्र-तत्र अपने ग्रन्थों में इन कथाओं का पुरजोर खण्डन किया है । वसुदेवहिण्डी आदि कथा ग्रन्थों में यह प्रवृत्ति दृष्टव्य है । नन्दीसूत्र में रामायण, महाभारत आदि जैसे ग्रन्थों को मिथ्याशास्त्रों में परिगणित किया गया है। दार्शनिक क्षेत्र में यही प्रवृत्ति मिथ्यात्वखण्डन के रूप में विकसित हुई है। हरिण की प्रस्तुत 'धम्मपरिक्खा' भी उसी परम्परा में अनुस्यूत एक अपभ्रंश महाभारत कृति है जिसका संपादन प्रथम बार हो रहा है । २. संपादन परिचय १. प्रति परिचय ___ अमितगति की धर्मपरीक्षा से भी पूर्व हरिषेण ने अभ्रंश में धम्मपरिक्खा की रचना की थी। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियां भण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीटयूट, पूना में सुरक्षित हैं । इन प्रतियों का परिचय इस प्रकार हैi) प्रति A इस पाण्डुलिपि का पुराना नं. है 617/1875-76 और नया नम्बर है 36 1 लेखन स्वच्छ ओर शुद्ध है । इसके कुल पन्ने 75 हैं। प्रथम तीन पन्नों में धागे के लिए कुछ स्थान छोड़ दिया गया है । प्रति का प्रारम्भ “ॐ नमो वीतरागाय" से होता है । वह लाल स्याही में है शेष पूरी पाण्डुलिपि काली स्याही में लिखी गई है। हाशिये में कोई टिप्पण नहीं है । प्रत्येक पृष्ठ में ग्यारह पंक्तियां हैं। हर पंक्ति में 38 से लेकर 44 अक्षर हैं। इसमें आदि -अन्त में कोई समय प्रशस्ति नहीं है । यह पाण्डुलिपि किसी पुरानी पाण्डुलिपि के आधारपर तैयार की गई है। लिपि अधिक पुरानी दिखाई नहीं देती । इसके पन्ने 56 a, 57, 69 अलिखित-से हैं । कागज कत्थे रंग का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy