SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३१ 10 तें धम्म संभवहि सुरिंद वि सम्महसणणाणचरित्तइ तहु भावणए सयलमलु खिज्जइ सुरफणिद अहमिदपडिद वि । भवियइ रयणत्तइ सुपवित्तइ । फलु णिव्वाणसुक्खु उप्पज्जइ । घत्ता- एरिसु जाणेविणु मणु णियमेविणु जिणु झायहु तिहुयणतिल उ । हरिसेणु हवेविणु णाणु लहेविणु विरयहु चउगइदुइ विलउ ।।२५।। तथोक्तम् प्राणाघातानिवृत्तिः परधनहरणे संयमः सत्यवाक्यं काले शक्त्या प्रदानं युवति जनकथामूकमावः परेषाम् । तृष्णास्रोतोविभंगो गुरुषु च विनतिः सर्वसत्वानुकम्पा सामान्यं सर्वशास्त्रेष्वनुपहतमतिः श्रेयसामेष पन्थाः ॥ इय धम्मपरिक्खाए च उवग्गाहिट्ठियाइ चित्ताए । वहहरिसेणकयाए णवमो संधी परिसमत्तो ।।९।। श्लोक ।। २३९ । 125) 1.bणवहि, a णणामरविदइ, 2.a ० लक्ख ई, 3.a गरुय०. 5.a अहिणवयर हरियंदणतिलंयउ, 9.a चउवयण, b सरावउ, 10.b संभवहि, ll.b चरित्तइं भवियई, a रणत्तइ. b रयणत्तय सपवित्तइं, 12.b तहुं भावणई सयल मलु खिज्जई, a णिव्वण मोक्खु पाविज्जइ, 13.b झायहुं, 14.b हरिसेण, b विवरयहुं चउँ गइंगमविलउ । 16.b परण for परधण, 17.b प्रदाणं b युवतिजणकथा, 18.a मति, 8.b संधी परिच्छेउं समत्तो संधि ॥९॥ b omits श्लोक।। ॥२३९।। Cf. यशस्तिलकचम्पू, भाग २, p. 99 : भर्तृहरिमीतिशतक, 54 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy