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तें धम्म संभवहि सुरिंद वि सम्महसणणाणचरित्तइ तहु भावणए सयलमलु खिज्जइ
सुरफणिद अहमिदपडिद वि । भवियइ रयणत्तइ सुपवित्तइ । फलु णिव्वाणसुक्खु उप्पज्जइ ।
घत्ता- एरिसु जाणेविणु मणु णियमेविणु जिणु झायहु तिहुयणतिल उ ।
हरिसेणु हवेविणु णाणु लहेविणु विरयहु चउगइदुइ विलउ ।।२५।।
तथोक्तम्
प्राणाघातानिवृत्तिः परधनहरणे संयमः सत्यवाक्यं काले शक्त्या प्रदानं युवति जनकथामूकमावः परेषाम् । तृष्णास्रोतोविभंगो गुरुषु च विनतिः सर्वसत्वानुकम्पा सामान्यं सर्वशास्त्रेष्वनुपहतमतिः श्रेयसामेष पन्थाः ॥
इय धम्मपरिक्खाए च उवग्गाहिट्ठियाइ चित्ताए । वहहरिसेणकयाए णवमो संधी परिसमत्तो ।।९।। श्लोक ।। २३९ ।
125) 1.bणवहि, a णणामरविदइ, 2.a ० लक्ख ई, 3.a गरुय०. 5.a अहिणवयर
हरियंदणतिलंयउ, 9.a चउवयण, b सरावउ, 10.b संभवहि, ll.b चरित्तइं भवियई, a रणत्तइ. b रयणत्तय सपवित्तइं, 12.b तहुं भावणई सयल मलु खिज्जई, a णिव्वण मोक्खु पाविज्जइ, 13.b झायहुं, 14.b हरिसेण, b विवरयहुं चउँ गइंगमविलउ । 16.b परण for परधण, 17.b प्रदाणं b युवतिजणकथा, 18.a मति, 8.b संधी परिच्छेउं समत्तो संधि ॥९॥ b omits श्लोक।। ॥२३९।। Cf. यशस्तिलकचम्पू, भाग २, p. 99 : भर्तृहरिमीतिशतक, 54 ।
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