SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९. नवमो संधि (1) कवि खादन कथा होएवि सेयंवर ते खेयरवर छठें दारि मणिभूसणे । गय वंभणसालहे भरिख लहे थिउ मणवेउ कणयासणे ।। छ । णवभेरिणिण्णाउ सुणेप्पिउ । आयउ को वि वाइ जाणेप्पिणु । दियवरेहिं आवेविणु पुच्छिय जाणहु कवणु सत्थु कहि अत्थिय । वाउ वि कवणु को वि तुम्हह गुरु भणइ ताम मणवेउ सियंवरु। 5 जाणहु भम्मह सत्थु पसत्थउ वाउ वि जि माणउ असमत्थ उ । किज्जई मोडिवि सो परु जाणिउ अवरु ण सत्थवाउ परियाणिउ । गुरुणा विणु तउ लइउ णिरुत्तउ तं णिसुणेविणु विपहि वुत्तउ । वइतंडिय आलाव मुएविणु णियवइयरु कहेहि भावेविणु। ता सेयंवरेण भासिज्जइ णिसुणहु णियवित्तंतु भणिज्जइ। 10 गुज्जरत्त वंसहडा पट्टणु मज्झु ताउ तहि णामें मोट्टणु । गदुरधेणुयाहि दुभंतिहि गच्छइ कालु जाम सुहपतिहि । घत्ता- एककहि दिणे जरियउ ता परि धरियउ ताएँ गदुखालउ । हउ रक्खमि आएँसहु लइ भाएँ जा गदुरउखालउ ॥१॥ तामइ वणि कविट्ठतरु दिउ भणिउ सभाइ एहु एत्थंतरि हउ वि कविठ्ठह लइ भक्खेविणु गदुरवग्घु वणम्मि णिएविणु इय भणियम्मि एहु किर णिग्गउ कत्तियाइ णियसीसु लुणेविणु ता छुहिएण अउच्वइ लद्धइ तित्ति लहेवि जा तहि तोंडउ एत्यंतरि दंतिहि तोडेविषु परिणयफलहरु सुठ्ठ विसिट्ठउ । तुहु वालहि मेढियउ वणंतरि । अवरु वि तुज्झु णिमित्तइ लेविणु । पच्छइ वच्छ मिलमि आवेविण । तामइ तरु मण्णे विणु तुंगउ । घल्लिउ तहि हत्थे पिल्लेविणु । मझ सिरेण कविठ्ठइ खद्धइ । ता फलरस परिपूरउ रुंडउ । बहु फलाई तरुतलि पाडेविषु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy