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पिच्छेविणु अइ तुच्छोयरिया णामेण भणिय मंदोदरिया। पुगु णिय कुडिरु णेहेण णिया कालेण जाय णवजोव्वणिया । ता एक्क दिवसे सुकुमालियए एहंतोए तीए कुसुमालियए। परिहिउ ससुक्कु मुणि कोवणउ तें गब्भु जाउ तायही तणउ । घत्ता- मउ चितइ जाम गब्भहो कारणु झाणें ।
णिय सुक्कविपास ता जाणिउ वरणागें ।।१२।।
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पुगु चितिउ जइ तावस मुणं ति इय एत्त अयसु किय परिहरेमि तणु लक्खणु होइ ण पयडु जेम इय चितिऊण तवखउ करेवि महियले मिलंति भणिऊण तेण जा होइ को वि भत्तारु पुत्ति एत्तहे लंकाउरि रक्खणाहु कइ कासि णामहि तहो पिययमाहे तें पच्छा जायइ सा कु मारि सा वावसाणे सो गब्भु ताहे
णियसुय कामिय एवं भणंति । परिछिद्द णिउणजणु किं करेमि । पच्छग्णु वि खोलमि गब्भु तेम । कुडियजलु णियकरयले धरेवि । गब्भे सहु अच्छहि ता अणेण। कि किज्जइ तुह एरिस भवित्ति । विस्सावसु णामें सिरिसणाहु । काले हुउ रावणु णिरुवमाहे । परिणिय मंदोयरि दिव्व णारि । पयडिउ तणुचिण्हहिं णिरुव माहे ।
घत्ता- सहो गेहि पसूय इंदइ णामें पुत्तु हुउ ।
सवंच्छर सत्त सय जेट्ठउ सो पिउहे सुउ ।।१३।।
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पराशर ऋषि और योजनगन्धा कथा संवच्छराइ सयसत्त जइ वि गब्भे थिउ इंदइ सच्चु तइ वि । महु वारह वरिसइँ गब्भवासु मण्णहु ण काइँ किर करहु हासु । अहवा किं भण्णइ पयइ एसु णिय दोसु वि जणु मण्णइ ण दोसु । वंभणहि भणिउ इउ होइ सच्चु पर सइँ तउ लेइ ण कोवि सच्च । पइँ जाए पुणु कण्णा हवेइ । तुह माय एउ कह संभवेइ । 5 (12) 1, b तणउं, b उडहिं, 2.b णिउणउं, b inter. जे and विहि, 3.a
अम्हह, 4.a वित्थिण्णयलि, 5.a तहि, 6.b झाण, 8 a पु for पुणु, a णवजोवणिया, 9.a सुकुमालियाए, a कुसुमालियाए, 10.a ससुक्र, b गब्भजाउ, b तणउं।
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