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________________ ७. सत्तमो संधि (1) उवयारणिमित्तु मित्तहो परमहियत्तणेण । भावेवि तिलोउ पुणु पणिउ खगवइसुएण ॥ छ ।। पवणवेय पुणरवि पुरि पइसमि अवरु वि परपुराणु तुह दरिसमि । इय भणंतु वाइय दलवट्टणु मित्तें सहु पइट टु पुणु पट्टणु । वंभमाल जा दारे चउच्छए जहि दिय देहि दोसु परमत्थए। तहि करेवि भेरी घंटासणु माणसवेउ चडिउ कणयासणु । णवर भेरि घंटासदे दिय आगय जे वायम्मि अणिदिय । पुच्छिउ तहिं कहं तहो आइय करहु पाउ जं भेरी वाइय । तावसरूवधारिमणवेएँ तो वोल्लिउ संजायविवेएँ। गामगुरु व भमंत संपाइय ण उ सत्थत्थ वियक्खण वाइय। दिय भणंति किं कीलालावें भणु तव कारणु मुक्कु पलावें । कुलु किं कवणु माइ कहिं जायउ कवणु ताउ को गुरु विक्खायउ । 10 घत्ता- खयरेण पुणुत्तु णियकारणु साहंतहो । भउ अस्थि ण तेण सच्चु वि कहमि महंतहो ।।१।। वृहत्कुमारिका कथा दिय भणहि ता तं पि भयकारणं जं पि। ता गुरु व रूवेण खयरवइतणएण। सायरसिलातरणु मक्कडहु णडयरणु। अक्खाणु णिसुणियउ दियवरहिं णिसुणियउ। पुणु भणिउ भउ मिल्लि जिह मणहि तिह बोल्लि। 5 खगु भणइ रम्मम्मि साकेयणयरम्मि । (1) 5.a बंम्हसाल, b देहि, 6.b तहिं, 7.a णवरि, b पुच्छिय, a तेहिं, a करउ, b जें भीरी, 9.a वोलितु for वोल्लिउ, ll.b भणि, b मुक्क, 12.b कवण्ण भाय, a कहि, 14.b कहमि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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