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________________ कम्मविरामि लद्ध ससरूवहु जम्मजरामरणरूयर हियहँ अंतातीय धरियसंमत्तह तवायावगाहिय ससरीरहँ खाइयदंसणणाण समिद्धहँ वाहारहिउ णइ इंदियजणियउ इय गुणसहिया तिलोयहो सारा हि सेजियहो जिणिण पयासिउ अहवा जइ केण वि जगु किज्जइ केवि भणहि किर जलु पुणु पुव्वउ ८५ विकेण वि गिरिसरिसायर किय पलाउ विसयलु बिलउ पभणिज्जइ जइ ताकि ण सो वि वारिज्जइ इकज्जें दियवंरहो पुराणइँ विहिहरिहरमणिय जड़ तिहुयणु एक्क वयणु दुणयणु दो करयलु (18) घत्ता - अंडयखंडेहि महियलु वंभंडु वि हुयउ | पुव्वसरीरउ ण पडिरुवहु । वीरिय अगरु गलहु गुणसहियहँ । छुहतहाइ विरामे सुतित्तह । सावगाहघणतोय या रहँ । णिरुवमणिच्च अचल सुहसिद्धहँ । जाउ उ हीणाहि भणियउ । भवियहु सरण होंतु भडारा । पवणवे तिह तुह जनु भासिउ । तो जगकत्ता केण वि रइज्जइ । वुव्वुआउ पच्छइ अंडउ हुउ । जइ ता जलुकच्छ वुव्वु वि अंडउ कि कियउ || १८॥ (19) Jain Education International केण वि रविखय ण विणासहो यि । किर हरिणा तहो जगु रक्खिज्जइ । विज्जु किं वदारिज्जइ । घहि ण अघडिय लोय अण्णाणइँ । किं ण चउम्मुहु चउ करु तिणयणु । दीes सलु विभुत्क्रम्मफलु । 5 (17) 1.b सग्गहिं, 2.b मज्झिम, छहि पोमहो, b छह पोमहिं, 3.a सुक्क तेरस, a चउद्दसेसु सुकुत्तम संठिय, 4. a संखहि, b ऊसास वि, a पक्खहि, 5 b सहासई, b णिच्च सक्खु, 6. b सद्दिट्ठिहि b विहगु, b कुदिट्ठिहि, 7.a भावणाइ, b दोकप्पतिय, b सुक्केआय, 8. b फस for फंस, a भायण, a आलोयण, 9.b कप्प, b वि सुभद्द पवियारहो हवेइं सुअसद्दि, 10.b चउं कप्पहिं, 11.b सहु for सुठु, 12. समत्तत्रुयाह, b सुरहं हिंउ माणसिउ । 10 ( 18 ) 2. ० रहियहु, a सहियउ, 3 a संमत्तहो, a ०तण्हा, a सुतित्तहु, 4.3 सरीरहो, a घणतेयायारहु, 5a व्दंसणण चरित्तहु णिरुवम् णिच्चयचलु सुहु सिद्धहु, 6.b ० रहिउ अणदिउ जणियउं, a हीणोहिउ, 7.a गुणसहिय, b भवियहस रणउं, 9.a केण रइ जइ, 10.b भहिं, b वुव्वुउ, lla खंडेहि, a वंब्भडु | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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