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________________ ७७ एयह पुरणयरेहि विमाणे हिं तिरियलोउ अकएहि विहूसिउ मज्झिमलोय गुणेहि अहिट्ठिय मणुयखेतु अड्ढाइय दीवहिं पूरिउ मगुसुत्तर परहुत्तउ जोयणसयइ अट्ठदहऊण तहिं जोइससुर पंचपयारय विप्फुरंत णाणामणिरयणइँ रयणमएहिं असंखपमाणहिं । इय सोणियहो जिणिदि भासिउ । दीवसमदृअसंख परिट्ठिय। पुणु तिरिक्ख पंचेदिय जीवहि । जामसयंभुरमणु जिणवुत्तउ । उवरि कमेविणु जोइसभवणई । रविससिगहणक्खत्तसतारय । एयह संख विहीण विमाणइँ। 10 घत्ता- उवरोवरी ताण वहमाणियसुर कहमि सुणु । ते कप्पुववण्ण कप्पतीद वि होति पुणु ॥५॥ (6) वैमानिक देव वर्णन 5 सोहम्मो ईसाणो अवरो तइओ भण्णइ सणयकुमारो । माहिंदो वंभा वंभोत्तर लंतउ तह काविट्ठ अणंतरु । सुक्का महसुक्को य सयारो सहयारो आणयपाणयरो। आरण अच्चउ एए कप्पा उड्ढं णवगइवेय वि अप्पा । उप्परि णव अणुदिस पभणिज्जहिं पुवदिसाइ कमेण गणिज्जहिं । लच्छि सोमुलच्छी मालिवरो सोमरुवेरो अंको अवरो। वरो अणुफलिहो य अणुवमो मझें थिउ आइच्चो णवमो । उप्परि पंचाणुत्तर भासिय हरिजमवरुणकुवेरदिसासिय । विजउ वइजयंतो वि जयंती तहिं चउत्थु अवराइ उ वुत्तो। तह सव्वत्थसिद्धि सयलुत्तम इहु मज्झम्मि परिट्ठिय पंचम् । पुगु सव्वत्थ सिद्धि लंघेविणु वारहजोयण उवरि कमेविणु । थिय विवरीयछत्त आयारें मोक्खासिला जि लोयवित्थारें। __ घत्ता- सा ससि भासेहि मज्झि अठजोयण कहिय । पासहिं हीयंति मक्खिय पंख व तणुय थिय ।।६।। 10 (5) 1.b भणिज्जहिं, 2.5 रुउरय is explained as गरुड in margin 3.b एयह, a पुरणयरेहि विमाणहिं रयणमएहि असंखइ माणहि, 4.a अकरएहि, a सेणियहो, 5.a गुणेहि, 6.a दीवहि, 7.a जाव सयंभुरवणु, 8.a ऊणइ, a भुवणइ, 9.a तहि, 10.a • रयणइ तहि परि संख०, a बिमाणइ, 12.a कप्पपवण्ण, a होहि । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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