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हणि जायको हलभावें क कहिवि जइ गुरुरहियउ तउ ता मुणि भणइ मुणत विण मुणहू
पुणु वि पुणु विहरि कहइ एयहो छलिउ भणेवि मंतेहि ताडिओ अलिउ अलिउ भणिउ जा मंतिणा परिहवं वहतेण नियमणे पइसिऊण एक्केण वाणरा णवर कहिमि वासरे सकंतउ णिएवि पणच्चमाण पवंगमा ताम से सुणिऊण तट्ठया णवर तेण तं पियहि भासिय भणइ मंति णिउ वणे भमंतउ
घरता - चंपापुरि णिउ गुणवम्मु तहो कासि मंति हणिवंभणु । तें सलिल तरंती दिट्ठ सिल कहिय णिवहो एयं ते पुणु ॥ ८ ॥
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ताम मंति वाईहि राणओ
जड़ विदिट्ठ कइणट्टु वोल्लिओ
और गज कथा
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कमण्डलु यथाचोक्तं तेन
ता दिय भणहि किमेण पलावें । दिट्टु सुनिउ अह जइ वि पसिद्धि गउ । जें कज्जे तें णिसुणहु पभणहु ।
बत्ता - हरिणा वि हसेविणु णिउ भणिउ चोज्ज् त्रियणे जं दिट्ठउ । तं जुत्तु वि लोउ ण सद्दहड़ जइ वम्हेण वि सिट्ठउ || ९ ||
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तह विणिउगपत्तियइ आयहो । वंधिऊण धरणियलि पाडिओ । ता हमेवि मेल्लविउ राइणा । तेण मूढकोवेण णिव वर्ण ।
कम्मु सिक्खविउ जिह णरा । लमाणु णिउ वणे भमंतउ । पेच्छ पेच्छ जा भणइ निययमा । ती ते अट्टिाविणट्ठया । ताए चोज्जु मंतिहि पयासियं । कहिमि दुट्ठभूएण पत्तउ । वंधिऊण ताडिज्ज माणओ । तो वि मंतिवयणेण मेल्लिओ ।
अश्रद्धेयं न वक्तव्यं प्रत्यक्षमपि यद्भवेत् ।
यथा वानरसंगीत तथा सा प्लवते शिला ॥१॥
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( 8 ) 2.2 पच्छिम दिसहि- पउलि-पइ, 3. b गंपि वंभसालहे, b जा सघंट 4.b दियह सगणह सेव्व जिणु, a दिट्ठउ, 5.6 भणिउं मुणहुँ, b मायासिरिहरु, 6. b मुणहुं, a अम्हह, b पभणहिं, 7.b पित्तभ, a भणेविणु for मुणेविणु, 8 b भणिउं for हणिउ a तो, b भूणहिं, 9. b कहि मि, a गुरुहियहु, b सुणिउं, a जइए पसिट्ठउ, 10 b ता, b भणई, b मुगहुं तें कज्जें तं b पभणहुँ, 11.a गुणवम्मं, b तहुँ, b हरिवंधणु, 12.2 हियमत्त for एयंते ।
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