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________________ पुणरवि तावसेहि पभणिज्जइ जें महिलहं लायउ कामगहु इंदियजणिउ वियारु सरीरए एम भणेवि सा व वरसत्थे णवर ताण सव्वाण वि लिंगइ चोज्ज भिण्णचित्तहि झाणें हरु भणिउ जयहि पिहि वीरूवें हरु संभु पवणरूवें रयणासण ईसरूव जजमाण परिट्ठिय सोमरूव तमणास तिलोयण हो पुज्जइ केत्तिय खम किज्जइ । एयहो दट्ठहो किज्जइ णिग्गहु । दंड पउंजहु इंदियसारए। छिण्णु लिगु तहो तावससत्थें । कयइ तेण परिवज्जिय अंगइ । तावसेहिं जाणिउ मयाहरु। जयहि जयहि जलरूवें संकरु । रुहरूव जय जयहि हुयासण । जय सिवरूवायास अणिट्ठिय । सुररूव महएव सुतेयण । घत्ता - इय अठ्ठ वि मुत्तिउ तुज्झ जए परउवयारहो कारण । विहिहरिहररुवहि करहि पुणु सिट्टि धरणु संहारणु ॥४॥ (5) जं अम्हहिं अण्णाणहिं सामिय किउ अजुत्तु तं खमि वि सगामिय । डिभु सपियरो अविणउ पयासइ सो परमत्थें तासु ण रुसइ । अम्हइ दप्पें पाविय आवइ पर चितिउ णियदेहहो आवइ । अरिहुमि उवरि सविणउ णमंतहु खमउ वज्जइ उत्तमसंतहु । अम्हइ पुणु पइ हियए थवेविणु अणुदिणु झायहु झाणु धरेविणु। 5 तो हरु भगइ पइट्ठ करेविणु पणमहु मज्झु लिंगु पुज्जेविण । पुणरवि जेण तुम्ह लिंगग्गइ लिगइ हवहि विहिय णियसंगइ । हत्थपहत्यहिं णवर धरेविणु सव्वहि सव्वायासु करेविणु। खंधे लेवि पडं तुटुंतहिं सव्वहि आसमु पत्तु चलतहि । कय पइट्ठ तहिं तेहिं णवंतिहि भत्तिए जय जय जय पभणंतिहि । 10 घत्ता-- तहो दिवसहो लग्गेवि एत्थु जय कयपमाण मुणिवयणिहिं । अइलज्जावणु वि लिंगु हरहो पुज्जिउ णरहिं अयाणहिं ।।५।। (4) l.a तावसेहि, 2.a महिलइ, 3.b जणिउं, a दंड, b०सारउ, 5.b लिंगइ, a परिसेसिय, 6.boचितहि, a तावसेहि, 7.b भणिउं जयहिं, b जयहि, 8.a संभ, b वणरूवें, b जयहिं हुआसण, 10.a सूरुरूव, a सुतेयणि, 11.b कारण, 12.b विहि• b रूवहि, b धरणसंधारण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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