SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घत्ता - वम्हें कामगहेण गहिए लज्जमुए विणु । रिउ संपणिउ रिच्छि रमिय रण्णि पइ सेविणु ॥ १७ ॥ (18) तो जंवओ पुत्तु रित्थि जो रमे अह रवि समासण ताजें अदिणा वि अयि सुउ जाउ घर थविय सुछाय चंदोवि सकलत्तु कोवग्गिदत्तेण मयम्मधारण गोयमहो महिला हे इंदोविरइरत्तु सविऊण सहस भउ अपरोहवरोहेण पुणु जणि सहसक्ख इय देवसंघार सायलो विक्रिकरहु ५५ इय भासिवि मंडवको सिएण सइ समहि तित्थ भमेइ जाम मयणसर विद्ध हुउ वियलचित्तु वाहिरे किर दीसइ सुरयणेण उप्पण्ण गुणजत्तु । सो कण्ण कह मुयइ । इधर यिकण्ण । Jain Education International किर कुंति कण्णा वि । कण्णे त्ति विवखाउ । सो मुयइ कह छाय | दट्ठूण भुंजं तु । रिसिविस मित्तेण । कलंकु किउ किउ तेण । आहल्लण्णा माहे । जाता घरु पत्तु । कुविण ते उ । उवस मउ कोहेण । इयलोय पच्चक्खु । परयारअणुराउ घत्ता - पर अज्जवि पिए दोसु एक्कहो जमहो ण दीसइ । धम्म हम्मुवि से जो मज्झत्थु गवेसइ ॥ १८॥ (19) पासि सुधर छाया जमपासि णिहित्त तेण । जमु छायारूउ नियंतु ताम । साते अणि वि कयं कलत्तु । पिय गिलिय जमेण भएण तेण । 5 For Private & Personal Use Only 10 (17) 3. उट्ठमुहु, b जाणियई, a तहि, 4. a देवेहि, 5. a कुद्ध, 8 b उग्गेण for उण्हेण, b वंभेण, 9 b तव for तह, 11.b उवसभिउं, a सो for तहो, 12. b सावंतु, b ति सो उत्तु, 13a अंगिट्ठिय०, b जालेहि, 15.a तवरवीणतवलस्स, 16 b इत्थ वि, 17.a रंतस्स, 18 b हत्था वि, 20.bछंदोवि, 21.b वंभे, b गहिएं, 22 b संपणियरिधि, a रण्ण । 15 www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy