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________________ २६ . जा झायहि रमणिहे करचरणा ता कि ण विप्पच्छकम्मगुणा। 5 इय चितमूढ परिहरहि तुहँ मा पावहि णरए र उदु दुहु । जा सयलदेवणुउ परमपरु तहो पायजुयल सरु सोयहरु । तं णिसुणेवि भासइ भूयमई दिता अम्हह वि पराणगई। परसुरहु विभुसहु पियविरहु कि मणु यह होइ ण कामगहु । उरदेहलच्छि ग उरिहरहँ मूढत्तगु कि तहो हरिहरहँ। घत्ता- इय भ मे वि भरेवि दो तुवइ अट्ठिया ण जा चलियउ । गंगहे ता एक्कहे गामि तहि सो ज ण्णवट्ट तहो मिलियउ ।।२२।। (23) तेण णवेवि भणिउं पाविट्ठहो पुच्छिउ दिउ को तुहु सो पभणइ तं णिसुणेवि भट्ट रूसेविणु भणइ हयास वंचिअप्पाणउँ गुइचरणारविंद फुल्लंघउ इय भणेवि जा अग्गइ गच्छइ ताए भएण पवेविरगत्तए पइ दो हियहि खमहिं संी भासिउ पुच्छिय का तुहँ ता सा जंपिय तो पभणइ कोवें कंपंतउ जइ विग्ध यरु जगु वि सुहसंगहे एम भणेवि झत्ति णोसरि उ खमहि मझु उज्झायणि किट्ठहो । जण्ण ? कि गुरु मइ ण मुणइ । सव्व वि वडयवयगु दूसेविण । कि वक्करु पहिं पहि सम्माणउ । अच्छइ तु वयम्मि सो इह मुउ। 5 जण्ण वि विहिवसेण ता पेच्छइ । पयणिवडियए अजोइयवत्तए । अच्छ इ सामि अत्थ अविणासिउ । जाणहि जण्ण किं ण मइ णिय पिय । झछु गामु कहिं हउँ संपत्तउ। 10 तो वि णेमि जण्णं इग गंगहे। गयविवेउ मूढस्ने तरियउ। घत्ता- णिसुणेवि कि पि कासु वि वयणु अलिउ वि सच्चउ मण्णइ । सच्चु वि सइ दिठ्ठ ण सद्दहइ सो वि मूढ इह भण्णइ ॥२३॥ (22) 1.a जो for जा, b कि, a.b तुहुं, 2.b सरहि, a किण्ह, 4.b जा चितहि कंतहि चिहुरसरा, 5.b करचरण, b किण्णप्पच्छक्कंमगुणा, 6.a सूद for मूढ, a तुहु, a णरये, 7.b भूयमई, 8.a हेत्ता, b अम्हई मि पराहमइ, 9.b देवाण विद्धसहु पियविरहु, 10.b गोरीहरहँ, a हरिहरह, 11.b भणेवि दो तुंवयइ, 12.a तहो for तहिं b जण्णवटु सो मिलियउ, a जण्ण बडुउ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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