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________________ : २४ (19) 5 अण्णोण्णु णिरुवेवि जण्णजणु महुरादिएहि पुंडरिउ जणु। आढविउ वेत्थु गउ विप्पुजाव सहवासि णिरंकुसु जण्ण जाव । वडुएँ पिचडंती रमणभाव अहिणवजोव्वण भण जणिय ताव । खलियक्खर जंपइ वडयमई पीडइ अगंगु ण वि काइँ पई। अह तियहि को ण परिहउ करइ । पइँ गोहु भणेविणु परिहरइ। विहसेविणु तो वडुएण बुत्तु गोरीगंगा रइसोक्ख रत्तु । जे मयणें हरु देउ वि विगुत्तु तहो कि अम्हारिसु मणुयमेत्तु । इय वयणहि मयणागलु पलित्तु ते तत्तलोह जिम मिलियचित्तु । णेहेण णिरंतर भिडिय गत्त दियहेहि वेवि एक्कतु पत्त ।। इय तहु रइसुहरंजियमणाहँ चउमास विगयदोहि वि जणाहँ। पत्ता- णवरेक दिवसि जण्णाए भणिउ जण्णवडय किं दुम्मणु। णिसूणेवि तेण पडिजंपियउ णियडु अम्ह भट्टागमणु ॥१९॥ 10 (20) वट्टइ जण्णे तेण में झिज्जमिणं तिलु तिलु करवत्तें छिज्जमि । मरमि विडंविउ जइ इह अच्छमि अहव जामि तुह वयणु ण पिच्छमि । तो सा भणइ तुज्झु साहिज्जइ ललिए विरहदुक्खु जें छिज्जइ । रयणिहि मडयजुयलु आणे विणु महु तुह सयणोवरि मेल्लेविणु । भवणभंतरे सिहि जालेविणु गय उत्तरदिस घरु झंपेविण । सणिउ सणिउ सिहिमज्झि डहेविणु। णयडु जउ खरपवणु लहेविण । तं णिएवि हा हा पभणंतउ सजलकुंभु दियसत्थु पहुत्तउ । पत्ता- जंपइ जणु एवहि महिवलए जण्णवडुय जण्णामरणे । गुरुविणयसइत्तण तणिय कहा गय अइरेण अकारणे ॥२०॥ 9 (19) la अण्णेण, a.b पूंडरिउ जण्णु, 2.b आढविउ विष्णु गउ तित्थ जाम, bणिरंकुस जण्ण ताम, 3.a वडुवं, b जोवण, 4.a वडयमइ, a काइ पइ, 5.a कोण्ण, a करेइ, a परिहरेइ, 6.b गंगाणई, 8.b दइवायहि for इय वयणहि, b जिह for जिम, b•चित्त, 9.b सिडिय for भिडिय, a देयहिंहि वेवि देयंतु पुत्तु, 10.b विगयदोई, a जणाह, II.b जण्णए भण्णिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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