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________________ प्रातिपदिक स्वरान्त और व्यंजनान्त दोनों प्रकार के होते हैं। उनके कारक रूपों की एक झलक हम निम्न प्रकारों में देख सकते हैं। धम्मपरिक्खा के आधारपर अकारान्त पुल्लिग के रूप निम्नप्रकार हो सकते हैं। १. देउ, देव, देवो, रिसहो देउ, देव, देवा, रिसहा २. देउ, देव, देवा देउ, देव, देवा, रिसहा ३. देवें, देवे, देवेण, रिसहेण देवहि, देवेहि, रिसहेहि ४. देव, देवस्सु, देवहो, रिसहो देवह, रिसहं ५. देवहु, देवहे, रिसहे देवहुं, रिसहुँ ६. देव, देवहो, देवस्सु, रिसहस्सु देव, देवहं, रिसहं ७. देवे, देवि, रिसहे देवहि, देवाहि, रिसहिं ८. देव, देवो, रिसहो देव, देवा, रिसहा इनके कारक प्रत्ययों को देखने से ऐसा लगता है कि इनमें मुख्यत: प्रथम, षष्ठी और सप्तमी विभक्तियां शेष रह गई है। उकार बहला प्रकृति है। निविभक्तिक पुल्लिग अकारान्त प्रयोग अधिक मिलते हैं। इनके कारक प्रत्यय इस प्रकार हैएकवचन बहुवचन १. उ, ओ २. उ,० ३. ए, एँ, ण ४. सु स्सु हो ० ० ० the heo no ६. सु स्सु हो पुल्लिग इकारान्त तथा उकारान्त आदि और स्त्रीलिंग के इकारान्त. उकारान्त आदि के रूप प्रत्यय कुछ परिवर्तनों के साथ इसी प्रकार लगाये गये हैं। सवनाम एकवचन बहुवचन १. हउँ, तुम, सो; इहु, तुहँ जे मे २. मइं, तं, तुमं, ममं जाइँ, ताइँ, अम्हे ३. मइँ, तेण, जेण, एण अम्हारिहिं, अम्हेहिं ४. ६. मझु, मम, मोर, तोर, तुम्हह, अम्हहँ, अम्हाण, तव, तहो, जासु, मम ताणं, जाणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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