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________________ इसी तरह राम वालिखिल्य राजा से रुद्रमति नामक म्लेच्छ राजा को बन्धन मुक्त करने के लिए कहते हैं। भ्रातृत्वभक्ति अतिवीर्य भरत से यद्ध करना चाहता था। वनमाला ने आकर राम को इस बात की सूचना दी । राम चिन्तित हो उठे । वनमाला ने सान्त्वना दी और जाकर अतिवीर्य को नृत्य करते समय पकड़ लिया। राम उसे जिनमन्दिर में ले आये। जिन भगवान की पूजन की और उससे कहा- तुम भरत के भृत्य रूप रहकर कौशल में रहो- "भरहस्स होहि भिच्चो. गच्छ तुम कोसला नयरी।" भाई के प्रति यह ममत्व प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बनाये रखना बहुत बड़ी बात है । लक्ष्मण भी इसी प्रकार राम के प्रति और गुरुजनों के प्रति भी सदैव विनयी रहते हैं। अन्य विशेषतायें ___ रावण को भी जैनाचार्यों ने एक प्रखर विद्वान और धार्मिक नेता के रूप में चित्रित किया है। उपरम्भा का प्रणय-प्रस्ताव ठुकरा कर रावण एक आदर्श प्रस्तुत करता है। रावण का व्रत था- "अपसन्ना परमहिला न य भोत्तव्वा सुरूवा वि" । इसीलिए सीता का हठात् उपभोग उसने नहीं किया। जैनाचार्यों ने वालि और सुग्रीव के बीच कोई स्त्री विषयक संघर्ष का उल्लेख नहीं किया। इसलिए वालि पर कोई चारित्र विषयक लाञ्छन नहीं है। हनुमान के चरित को भी उनके कार्यों से उज्ज्वल बनाने का प्रयत्न किया गया है। कैकेयी अपने वियोगी जीवन को स्वस्थ बनाये रखने के लिए भरत को राज्याभिसिक्त करने का प्रस्ताव करती है। परन्तु परिणाम देखकर अत्यन्त पश्चात्ताप करती है। अन्ततः राम को वापिस बुलाने के लिए जाती है और राम से नारी स्वभाव की चंचलता का आख्यान करती है। सीता का चरित भी उन्नत है। अग्नि परीक्षा के समय राम को उद्बोध करती है। राम के सादर आग्रह करने पर भी गृहस्थावस्था में न आकर जिनदीक्षा ले लेती है। ३. जैनत्व समूची रामकथा को जिस प्रकार वाल्मीकि ने हिन्दुत्व से रंग दी है उसी प्रकार जैनाचार्यों ने जैनत्व उसमें कूट कूट कर भर दिया है। राम दर्शन के समय कपिल से कहा जाता कि जो अणुव्रत धारण करने वाला हो, जिसे जिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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