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________________ उत्तरज्झयणाणि १७३ प्रवृत्त होता रहता है, उसे अन्य वस्तुप्रों या विषयों से निवृत्त कर एक वस्तु या विषय में प्रवृत्त करना भी ध्यान है। मन, वचन और काया की स्थिरता को भी ध्यान कहा जाता है । इसी व्युत्पत्ति के आधार पर ध्यान के तीन प्रकार होते हैं १. मानसिक-ध्यान-मन की निश्चलता-मनो-गुप्ति । २. वाचिक-ध्यान-मौन—वचन-गुप्ति । ३. कायिक-ध्यान--काया की स्थिरता-काय-गुप्ति । छद्मस्थ व्यक्ति के एकाग्र-चिन्तनात्मक-ध्यान होता है और प्रवृत्ति-निरोधात्मकध्यान केवली के होता है। छद्मस्थ के प्रवृत्ति-निरोधात्मक-ध्यान केवली जितना विशिष्ट भले ही न हो, किंतु अंशतः होता ही है। ध्यान के प्रकार एकाग्र-चिन्तन को 'ध्यान' कहा जाता है । इस व्युत्तत्ति के आधार पर उसके चार प्रकार होते हैं-१. प्रात, २. रौद्र, ३. धर्म्य और ४. शुक्ल । १. प्रार्त-ध्यान-चेतना की परति या वेदनामप एकाग्र-परिणति को 'आतंध्यान' कहा जाता है । उसके चार प्रकार हैं (क) कोई पुरुष अमनोज्ञ संयोग से संयुक्त होने पर उस (अमनोज्ञ विषय) के वियोग का चिन्तन करता है--यह पहला प्रकार है । (ख) कोई पुरुष मनोज्ञ संयोग से संयुक्त है, वह उस (मनोज्ञ-विषय) के वियोग न होने का चिन्तन करता है-यह दूसरा प्रकार है । (ग) कोई पुरुष अातंक (सद्यावाती रोग) के संयोग से संयुक्त होने पर उस (अातंक) के वियोग का चिन्तन करता है—यह तीसरा प्रकार है ।। (घ) कोई पुरुष प्रीतिकर काम-भोग के संयोग से संयुक्त है, वह उस (कामभोग) के वियोग न होने का चिन्तन करता है-यह चौथा प्रकार है । प्रात ध्यान के चार लक्षण हैं--१. प्राक्रन्दन करना, २. शोक करना, ३. आंसू बहाना, ४. विलाप करना । २. रौद्र-ध्यान-चेतना की क्रूरतामय एकाग्र-परिगति को 'रौद्र-ध्यान' कहा जाता है। उसके चार प्रकार हैं (क) हिंसानुबन्धी-जिसमें हिमा का अनुबन्ध -हिंसा में सतत प्रवर्तन हो । (ख) मृषानुबन्धी-जिसमें मृषा का अनुबन्ध -मृषा में सतत प्रवर्तन हो। (ग) स्तेनानुबन्धी-जिसमें चोरी का अनुबन्ध --चोरी में सतत प्रवर्तन हो । (घ) सरक्षणानुबन्धी-जिसमें विषय के साधनों के संरक्षण का अनुबन्ध-विषय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003671
Book TitleChitta Samadhi Jain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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