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________________ खारवेल ने श्रावक के व्रतों की पालना कर जीव और देह का सद्विवेक का अनुभव किया था। आगम के उद्धारक एवं श्रोता: । राजा खारवेल की जैन सम्मत देव, शास्त्र और गुरु रूपी तीन रत्नों में पूरी श्रद्धा थी। हाथीगुम्फा शिलालेख की १६ वी पंक्ति में कहा गया है कि: मुरियकाल वोछिनं च चोयठि अंग संतिकं तुरियं उपादयति। खेमराजा स वधराजा स भिखुराजा धमराजा पसंतों सुनंतो अनुभवंतो कलणानि ...। राजा खारवेल सिरि। अर्थात् मौर्य काल में नष्ट हुए १२ अंगों रूप श्रुत का शीघ्र ही राजा खारवेल ने उद्धार किया था। वे क्षमाशील राजा वर्धमान राजा, भिखुराजा, धर्मराजा अंगों की वाचना को देखता था, सुनता था और अनुभव अर्थात् मनन करता था। शास्त्रों के प्रति उनकी श्रद्धा-भक्ति स्पष्ट है। यहाँ ध्यातव्य है कि मौर्य काल अर्थात् चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में मगध में १२ वर्ष का दुर्भिक्ष पडा था। उस समय श्रुत छिन्न-भिन्न हो गया। कलिंग के राजा खारवेल ने उस समय स्थूलभद्र की अध्यक्षता में हुई शास्त्र वाचना में स्वीकृत शास्त्रों और उनके पाठों को स्वीकार नहीं किया था। वे भद्रबाहु के अनुगामी थे। इसी कारण से खारवेल राजा ने जैन अर्हतों, यतियों, तापसों, पंडितों आदि संघों और संघपतियों को आमंत्रित करके नवीन निर्मित पाटल वर्ण के सुन्दर इमारत में वाचना आयोजित की थी। जिसमें वे स्वयं उपस्थित रहते थे। इस वाचना के द्वारा अंग साहित्य को व्यवस्थित अर्थात् उनके पाठों को अंतिम रूप दिया गया था। . मुरिय काल वोछिनं च चोयठि अंग संतिकं तुरयिं उपादयति। इस पंक्ति के विभिन्न अर्थ निकाल कर विद्वानों ने उसे विवादग्रस्त बना दिया है। एन.के. साहु आदि जैनेतर विद्वानों में चोयठि का अर्थ ६४ करके उक्त पंक्ति का . अर्थ किया है कि मौर्य शासनकाल में अव्यवस्थित चौसठ कला युक्त तौर्यत्रिक अर्थात् नृत्य, संगीत और वाद्य को उन्नतशील बनाया गया था। लेकिन यह अर्थ प्रसंग के अनुकूल नहीं है। ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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