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________________ तमिल राष्ट्रसंघ पर विजयः खारवेल के समय में दक्षिण के देशों ने एक राष्ट्रसंघ बना लिया था, जिसे जीतना दुष्कर था । खारवेल ने अपनी चतुर युद्ध नीति से तेरह सौ वर्ष पुराने तमिल राष्ट्रसंघ को नष्ट कर अपने कलिंग देश को निष्कंटक बना लिया था । पांड्यों पर विजय : दक्षिणी राजा पांड्यों पर उन्होने जल थल दोनों ओर से आक्रमण कर उनसे लाखों रत्नादि प्राप्त किये थे । इस प्रकार दक्षिण में उनका राज हो गया था । उपर्युक्त वर्णित उनके राजनैतिक विवरणों से उनकी रणनीति और दक्षता स्पष्ट हो जाती है। उन्होंने कलिंग देश के राज्य की सीमा पूर्व, पश्चिम उत्तर और दक्षिण तक बढा दी थी। यही कारण है कि मंचपुरी गुंफा के लघु भित्त अभिलेख में उन्हें चक्रवर्ती कहा गया है । यथा: "अरहंत पसादाय... कलिंग चकवतिनो सिरिखारवेलस अगमहिसिना कारितं । " प्रजा के शुभचिन्तक तथा उदार राजा: राजा खारवेल अपनी प्रजा को बहुत प्यार करते थे। अपनी ३५ लाख प्रजा की सुविधा के लिए उन्होंने खिवीर त्र - षि सागर नामक तलाब के तटों पर सीढियों का निर्माण सर्वप्रथम कराया था । कलिंग को सुंदर और आकर्षक बनाने हेतु उन्होंने बागबगीचों का भी पुनरुद्धार करके उन्हें सजाया था । पानी की कमी को दूर करने के लिए १०३ वर्ष पूर्व बनी नहर को कलिंग नगरी तक लाये थे । २. ३. प्रजा के मनोरंजन के लिए वे सदैव मेलों और सामाजिक उत्सवों का आयोजन करवाया करते थे । राजा खारवेल उदार थे। उनका खजाना भरपूर था। उन्होंने राष्ट्रिक और भोजक आदि चतुर्दिक के राजाओं को प्ररास्त कर मणि, रत्न आदि प्रप्त किये थे। उन्होंने शहरी और ग्रामीण सम्पूर्ण प्रजा के करों को माफ कर दिया था । इसके अलावा प्रजा को अनेक रियायतें देने की घोषणाएँ भी की थीं। Jain Education International २६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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