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ने ई.पू.२५० माना है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि ई.पू.४५० के पहले जैनधर्म कलिंग में व्याप्त और लोकप्रिय धर्म बन चुका था। किसी मूर्ति विशेष का आदर सम्मान करना नन्द राजा की महानता का सूचक है।
प्राचीन उड़ीसा में राजा महापद्म नन्द के शासन काल में जैन धर्म की बहुत उन्नति हुई थी। कलिंग विजय के पश्चात् नन्द राजा द्वारा कलिंग में प्रवल और प्रभावशाली प्रमुख जैन धर्म को नष्ट कर देने के कोई प्रमाण और कारण नहीं प्रतीत होते हैं। इसके विपरीत नन्द राजा के शासन काल में भी जैनधर्म कलिंग देश का प्रधान धर्म बना रहा। आर.पी. महापात्र और के.सी. पाणिग्राही ने अपनी-अपनी कृतियों में कहा भी है :
"There is however no reason to think that Jainism ceased to be the dominant religion of Kalinga soon after its conquest by the Nandas. It must have continued as the major religion of this country." (द्रष्टव्य जैन मोनुमेंट्स ऑफ उड़ीसा पृ.२० और हिष्ट्री ऑफ उड़ीसा पृ.२९७)
कलिंग जिन की मूर्ति का उल्लेख ई.पू.५-४ शताब्दी में जैन धर्म संस्कृति की प्राचीनता का द्योतक है। वहीं दूसरी ओर इस बात का प्रतीक भी है कि मूर्तिकला सर्व प्रथम उड़ीसा में प्रारम्भ हुई थी। सम्राट अशोक का कलिंग पर आक्रमण:
महापद्म नन्द राजा के लम्बे समय तक राज्य करने के पश्चात् और सम्राट अशोक के मध्य काल का प्राचीन उड़ीसा का इतिहास रिक्त प्रतीत होता है। नन्द वंश के पश्चात् मोर्य वंश का उदय हुआ। उस वंश का राजा चन्द्रगुप्त और उसका पुत्र विन्दुसार जैन धर्मानुयायी थे, लेकिन इन्होंने कलिंग पर शासन किया, ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है। बिन्दुसार का पुत्र सम्राट अशोक कलिंग और जैनधर्म की दृष्टि से विचारणीय हैं। अशोक जैनधर्म के मानने वाले कुल में उत्पन्न हुआ था। उसे जैन धर्म वंशानुक्रम से प्राप्त हुआ था। जैन साहित्य में अशोक को जैन राजा माना गया है। पं. कैलास चन्द्र शास्त्री प्रभृति विद्वानों की मान्यता है कि सम्राट अशोक प्रारम्भ में जैन थे। विदेशी विद्वान एड्वर्ड टामस ने
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