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पाहा
जैनधर्मावलम्बी वट वृक्ष की पूजा करते है। इसी से प्रभावित होकर संपूर्ण उड़ीसा में वट वृक्ष की पूजा होती है। इसी प्रकार उड़ीसा मे जो नीति विषयक लोक कथायें उपलब्ध होती हैं वे निश्चित रूप से जैन धर्म से ली गयी है।
जैन खगोल शास्त्रियों ने देश में सर्व प्रथम शक संवत् चलाया है। शकाब्द का प्रयोग सब से पहले जैन लेखक सिंह सूरि की कृति लोक विभाग में उपलब्ध होता है । यह कृति कांची में शकाब्द ३८८ (ई.सन्.४६६) में लिखी गयी थी। उड़ीसा में अनेक लेखक और ताम्र की प्लेट के अभिलेख में सर्व चन्द्र, खण्डि चन्द्र, भानु चन्द्र, विनय चन्द्र आदि उतकिर्णिकों के नाम से प्रमाणीत होता है कि वे जैन संप्रदाय के थे। आर.पि महापात्र ने जैनमोनुमेण्टस् ऑफ उड़ीसा (पृ.४६) लिखा है कि दक्षिणी उड़ीसा के सुनार सामान्य रूप से सरभ कहलाते है। सरभ शब्द का उद्भव मूलत: श्रवक से हुआ है। उड़ीसा में मनुष्य का एक संप्रदाय कलिंग कुमुति के नाम से जाना जाता है। वे उद्योग और वाणिज्य करते है। वे दक्षिण से आये थे और जैन धर्म स्वीकार कर दोनो क्षेत्रों के मध्य में शृङ्खला बन गये। शारला दास के महाभारत आये हुए वृतान्त का प्रमाण देते हुए यह स्वीकार किया गया है कि जानुघंट सम्भवत: बहुत शक्तिशाली राजा था। जो भिक्षा या दान मांगे विना जीवित और दिगम्बर रहता था तथा अंहिसा का पालन करता था। इससे प्रतीत होता है कि वह और उस के अनुयायी भी जैन धर्म से प्रभावित थे।
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