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प्राचीन कलिंग में जैन धर्म
जब हम कलिंग देश में जैन धर्म की चर्चा करते है तो इसका अभिप्राय खारवेलराज्य कालीन जैन धर्म से होता है। इसका कारण खारवेल के समय में जैन धर्म का चरम संप्रसारण, संरक्षण और संवर्धन होना है। यही कारण है कि कलिंग में जैन धर्म खारवेल का पर्यायवाची बन गया है। तात्पर्य यह नहीं है कि खारवेल के पूर्व कलिंग में जैन धर्म था ही नहीं, खारवेल के पूर्व भी कलिंग में जैन धर्म के अस्तित्व होने के अनेक प्रमाण और चिन्ह जैनागमों एवं हाथी गुफा शिलालेख में उपलब्ध हैं। उनके अध्ययन के आधार पर कलिंग में जैनधर्म के क्रमिक विकास को जानने के लिए उसका वर्गीकरण निम्मांकित भागों में किया जा सकता है।
क. खारवेल के पूर्वकाल में जैन धर्म ख. खारवेल कालीन जैन धर्म ग. खारवेलोतर कालीन जैन धर्म
यहाँ हम हम इन तीन काल खंडों के आधार पर तत्कालीन कलिंग में जैन धर्म की ऐतिहासिक यात्रा पर दृष्टिपात करेगें। क) सम्राट खारवेल के पूर्व कलिंग में जैन धर्म:
प्राचीन काल में कलिंग देश एक महान गौरवशाली देश था। यहाँ की मिट्टी से विविध प्रकार के धर्मों का जन्म हुआ। दूसरे शब्दों में प्राचीन काल में विश्व के अद्वितीय और अनुपम कलिंग देश में उर्वरित होने वाले धर्मों में सर्वश्रेष्ठ, ज्येष्ठ और गरिष्ठ धर्म के रूप में जैनधर्म विश्व विश्रुत(प्रसिद्ध) था। उक्त कलिंग ही आज उडीसा के नाम से जाना जाता है। उडीसा या कलिंग में जैन धर्म का प्रारम्भ कबसे हुआ? यह प्रश्न बार-बार मानस पटल में उभरता रहता है। अनेक विद्वानों ने इसके समाधान करने का प्रयास किया। लेकिन जिज्ञासा ज्यों की त्यों वर्धनशील रही, क्यों कि तत्सूचक साधनों का अमाव होने से प्राक् ऐतिहासिक कालीन घटनाओं की एक तिथि निश्चित करना किसी को भी संभव नहीं है। जैन मोनुमेन्टस ऑफ उडीसा में आर. पी महापात्र ने ठीक ही कहा है।
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